tag:blogger.com,1999:blog-1309614833793784412024-03-05T02:41:10.858-08:00चिरंतन . . .आज फिर शुरू हुआ जीवन .
आज मैंने एक छोटी सी ,सरल सी कविता पढ़ी ,
आज मैंने सूरज को डूबते देर तक देखा ,
आज एक छोटी सी बच्ची किलक मेरे कंधे चढ़ी .
आज मैंने आदि से अंत तक एक पूरा गान किया .
आज फिर जीवन शुरू हुआ .meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.comBlogger487125tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-92044469548556066562014-04-23T03:39:00.000-07:002014-04-27T05:05:25.130-07:00यहाँ जहाँ हम रहते हैं ...
पृथ्वी, सौर मंडल का एक मात्र ग्रह जहाँ जल है, वायु है, वनस्पति है, जीव है, जीवन है। सूर्य से सही दूरी पर मौजूद, अपनी धुरी पर घूमती पृथ्वी अलग-अलग ऋतुओं, फल-फूलों, धन-धान्य द्वारा प्रकृति के सर्वोत्तम उपहार हम पर लुटाती रही है। हमने साधिकार उन्हें स्वीकारा ही नहीं बल्कि जहाँ मौका मिला नोच-खसोट कर अधिक लेने से भी नहीं चूके। स्नेहवत्सला पृथ्वी ने जितना हमने माँगा उतना हमें दिया। पर meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-87308763909974043542014-04-23T03:21:00.004-07:002014-04-23T04:04:22.210-07:00भरोसे के तंतु
ऐसा क्या है कि लगता है
शेष है अभी भी
धरती की कोख में
प्रेम का आखिरी बीज
चिड़ियों के नंगे घोंसलों तक में
नन्हे-नन्हे अंडे
अच्छे दिनों की प्रार्थना में लबरेज़ किंवदंतियां
चूल्हे में थोड़ी सी आग की गंध
घर में मसाले की गंध
और जीवन में
एक शर्माती हुई हँसी
क्या है कि लगता है
कि विश्वास से
एक सिरे से उठ जाने पर
नहीं करना चाहिए विश्वास
और हर एक मुश्किल समय में
शिद्दत से
खोजना चाहिए एक स्थान
जहाँ से meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-33662227285155538142014-04-23T03:00:00.000-07:002014-04-23T04:04:22.192-07:00ओ पृथ्वी
छाती फाड़ कर दिखा सकता तो बताता
तुम्हारे लिए मेरे भीतर कितना प्यार है ओ पृथ्वी !
जो तुम्हें ध्वस्त कर, अपनी शक्ति का अनुमान लगाते हैं
दूसरों के मन में भय जगाते हुए
निर्भय और सुरक्षित होने का डंका बजाते हैं
क्षमा करो उन्हें, क्षमा करो पृथ्वी !
क्षमा करो और नए मनुष्य के शीश पर हाथ रख
आशीर्वाद दो कि वह इन आतताइयों के विरुद्ध
युद्ध में विजयी हो !
विजयी हो और
वनस्पतियों-पक्षियों-पशुओं और मनुष्यों meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-44488115688063914152014-04-22T23:48:00.003-07:002014-04-23T04:04:22.196-07:00पृथ्वी
पृथ्वी धीरे-धीरे नष्ट हो रही है
जैसे नष्ट हो रहा है घर
जैसे नष्ट हो रहा है जंगल
जैसे नष्ट हो रही है तन्मयता
जैसे नष्ट हो रही है समझदारी
नष्ट हो रहा है साधारण का प्रकाश
नष्ट हो रहा है बीत चुका युग
नष्ट हो रहा है प्रेम के लिए एकांत
नष्ट हो रहा है सारा समर्थ-असमर्थ
बढ़ रहा है सिर्फ झूठ
बढ़ रहा है सिर्फ छल
बढ़ रहा है सिर्फ सुनसान
बढ़ रहा है सिर्फ प्रश्न-चिन्ह
पृथ्वी धीरे-धीरे नष्ट हो रही है
जैसे meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-66482634840171886422014-04-22T23:34:00.003-07:002014-04-23T04:04:22.201-07:00यह पृथ्वी रहेगी
मुझे विश्वास है
यह पृथ्वी रहेगी
यदि और कहीं नहीं तो मेरी हड्डियों में
यह रहेगी जैसे पेड़ के तने में
रहते हैं दीमक
जैसे दाने में रह लेता है घुन
यह रहेगी प्रलय के बाद भी मेरे अंदर
यदि और कहीं नहीं तो मेरी ज़बान
और मेरी नश्वरता में
यह रहेगी
और एक सुबह मैं उठूंगा
मैं उठूंगा पृथ्वी-समेत
जल और कच्छप-समेत मैं उठूंगा
मैं उठूंगा और चल दूंगा उस से मिलने
जिस से वादा है
कि मिलूंगा ।
- केदारनाथ सिंह . meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-49045013340175131522014-04-22T23:29:00.001-07:002014-04-23T04:04:22.198-07:00पृथ्वी का सामान्य ज्ञान
पृथ्वी-
घोर अंधकार में घूमती हुई पृथ्वी
देख रही है
भय और विस्मय-भरी नज़रों से
अपनी धुरी को
उसे अब पता चला है
वह नाच रही है
एक मिसाइल की नोक पर।
- नोमान शौक़ .
meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-70793681115481829172014-04-22T23:25:00.001-07:002014-04-23T04:04:22.206-07:00कैसा पानी कैसी हवा
किस तरह होती जा रही है दुनिया
कैसे छोड़ कर जाऊंगा मैं
बच्चों तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को
इस कांटेदार भूल-भुलैया में
किस तरह और क्या सोचते हुए
मरूंगा मैं कितनी मुश्किल से
सांस लेने के लिए भी जगह होगी या नहीं
खिड़की से क्या पता
कब दिखना बंद हो हरी पत्तियों के गुच्छे
हरी पत्तियों के गुच्छे नहीं होंगे
तो मैं कैसे मरूंगा
मैं घर में पैदा हुआ था
घर पेड़ का सगा था
गाँव में बड़ा हुआ
गाँव खेत-मैदान काmeetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-37294688718124523552014-04-22T23:13:00.000-07:002014-04-23T04:04:22.194-07:00सब्ज़ लम्हे
सफ़ेदा चील जब थक कर कभी नीचे उतरती है
पहाड़ों को सुनाती है
पुरानी दास्तानें पिछले पेड़ों की …
वहां देवदार का इक ऊंचे कद का पेड़ था पहले
वो बादल बाँध लेता था कभी पगड़ी की सूरत अपने पत्तों पर
कभी दोशाले की सूरत उसी को ओढ़ लेता था …
हवा की थाम कर बाहें
कभी जब झूमता था, उस से कहता था,
मेरे पाँव अगर जकड़े नहीं होते,
meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-25151869837870895792014-04-22T22:57:00.002-07:002014-04-23T04:04:22.189-07:00छोटी-सी दुनिया
यही जो छोटी-सी दुनिया हमें मिली है
सच है, सुन्दर है
और असह्य भी-
यही सम्हाले नहीं सम्हलती है
यही भरी है इतने हर्ष से, यही द्रवित है इतने विषाद से।
अपने बगल में टुकुर-टुकुर ताकती गिलहरी से
कहा फूल ने-
एक बुढ़िया अपनी गुदड़ी से निकालकर
एक तोता खाया फल अपनी नातिन को देते हुए
यही बोली।
छोटी सी है तितलियों और मधुमक्खियों की दुनिया,
छोटी सी दुनिया तोतों और बगुलों की,
आम और अमरुद की, इमलियों और बेरोंmeetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-21284675070491953082014-03-05T00:48:00.000-08:002014-03-05T00:48:23.037-08:00संवेदना - The Thread that Binds
मानवीय सुख-दुःख निरंतर अभिव्यक्ति का मार्ग तलाशते हैं। सुख का वह एक क्षण जब मनुष्य को लगता है धूप का सोना बिखरा है तो मानो उसी के लिए, बारिश यदि होती है तो बस उसे ही भिगोने के लिए, तारों से भरा-पूरा आसमान उस से ही बातें करना चाहता है, दुनिया का हर फूल उसे देख कर मुस्कुराता है … जैसे सब कुछ स्पंदित है उसके ह्रदय की गति से, चारों ओर सौंदर्य और स्फूर्ति भरी है उसकी ही विस्मित meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-50527772585400247422014-03-05T00:47:00.000-08:002014-03-05T00:47:51.596-08:00कोई नहीं उसके साथ
क्या दुःख कविता में धुंधला हो जाता है
या कभी-कभी चमकीला भी
जीवन में पछाड़े खाती उस औरत का
तार-तार होता विलाप
पराये शब्दों में जाकर क्या से क्या हो जायेगा
कहना कितना मुश्किल है
तहस-नहस कर दी गयी उसकी झोपड़ी
चिथड़ों-बरतन भांडों समेत
बेदखल कर दी गयी जो विधवा
डरते-कांपते अधनंगे तीनों बच्चे खड़े
तकते उसे जैसे वह कोई खौफनाक दृश्य
तीसरे जो भी बांचेंगे
विस्थापन की यह हिंसा
दिखाई देगा क्या उन्हें
ऐसे meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-84267638723230506362014-02-21T03:29:00.001-08:002014-03-05T00:40:10.379-08:00The Little Boy and the Old Man
Said the little boy, "Sometimes I drop my spoon."Said the old man, "I do that too."
The little boy whispered, "I wet my pants.""I do that too," laughed the little old man.
Said the little boy, "I often cry."The old man nodded, "So do I."
"But worst of all," said the boy, "it seemsGrown-ups don't pay attention to me."
And he felt the warmth of a wrinkled old hand."I know what you mean," said the meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-76004499129403803272014-02-20T20:33:00.001-08:002014-03-05T00:40:10.375-08:00क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
मैं दुखी जब-जब हुआ
संवेदना तुमने दिखाई,
मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा,
रीति दोनो ने निभाई,
किन्तु इस आभार का अब
हो उठा है बोझ भारी;
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
एक भी उच्छ्वास मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा?
उस नयन से बह सकी कब
इस नयन की अश्रु-धारा?
सत्य को मूंदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी?
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?क्या करूँ?
कौन है जो meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-26901184385856831142014-02-18T03:09:00.000-08:002014-03-05T00:52:13.285-08:00मेरा चेहरा
मेरा चेहरा
अगर नहीं बन पाया मेरा गीत
कुछ नहीं …
चेहरा जिस पर धूल पड़ी है झीनी-झीनी सी
जिसके नीचे आग दबी है नयी रौशनी की
खाकर मार समय की मेरी बोझल पेशानी
अगर नहीं गा पायी मेरी टूटन का संगीत
कुछ नहीं
मेरा गीत न गा पाया यदि दर्द आदमी का
अगर नहीं कर पाया थमे पसीने का टीका
भाषा बोल न पायी हारी-थकी झुर्रियों की
लाख मिले मुझको बाज़ारू जीत
कुछ नहीं
- रमेश रंजक .
meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-367161571260287952014-02-18T03:02:00.001-08:002014-03-05T00:40:10.362-08:00उसने मेरा हाथ देखा
उसने मेरा हाथ देखा और सर हिला दिया
"इतनी भाव प्रवणता
दुनिया में कैसे रहोगे !
इस पर अधिकार पाओ , वरना
लगातार दुःख दोगे
निरंतर दुःख सहोगे। "
यह उधड़े मांस सा दमकता अहसास
मैं जानता हूँ , मेरी कमज़ोरी है
हलकी सी चोट इसे सिहरा देती है
एक टीस है जो अंतरतम तक दौड़ती चली जाती है
दिन का चैन और रातों की नींद उड़ा देती है
पर यही एहसास तो मुझे ज़िंदा रखे है
यही तो मेरी शहज़ोरी है !
वरना मांस जब मर जाता है
meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-71208982700351706462014-02-18T00:52:00.000-08:002014-03-05T00:53:17.402-08:00हरापन नहीं टूटेगा
टूट जायेंगे
हरापन नहीं टूटेगा
कुछ गए दिन
शोर को कमज़ोर करने में
कुछ बिताए
चाँदनी को भोर करने में
रोशनी पुरज़ोर करने में
चाट जाये धूल की दीमक भले ही तन
हरापन नहीं टूटेगा
लिख रही हैं वे शिकन
जो भाल के भीतर पड़ी हैं
वेदनाएँ जो हमारे
वक्ष के ऊपर गढ़ी हैं
बन्धु! जब-तक
दर्द का यह स्रोत-सावन नहीं टूटेगा
हरापन नहीं टूटेगा
- रमेश रंजक .
meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-89091753489282093492014-02-15T20:55:00.000-08:002014-03-05T00:40:10.383-08:00नदी पार करते हुए
मैं नहीं देख पाता
अपनी ओर बढ़ती हुई लहरों को
डरकर दूर भागती मछलियों को
किनारे से कटती हुई मिट्टी को
कैसे जान पाता नदी का दुःख
अगर गुज़र जाता मैं भी पुल से
औरों की तरह !
- नोमान शौक़ .
'रात और विषकन्या' से .
meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-32118467003818478742014-02-15T20:47:00.004-08:002014-03-05T00:40:10.358-08:00संयोगवश
मैंने एक दिन सड़क पर
एक आदमी को देखा
और मुझे लगा मैं इसे जानता हूँ।
'गलत'- मेरे मन ने कहा
तुम इसे नहीं जानते।
जानता हूँ - मैंने कहा
यह वही आदमी है
जो मुझे ट्रेन में मिला था
एकदम गलत - मेरे मन ने फिर कहा
यह वह नहीं है !
है !
नहीं है -
मैं देर तक सोचता रहा
कि तभी मुझे दीखा
उसके धूप भरे चेहरे पर वह चिकना सा द्रव
जो आदमी को पेड़ों से अलग करता है।
वही - वही
यह वही आदमी है -
मैंने खुद से meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-28523572867480217422013-12-31T00:38:00.000-08:002013-12-31T00:39:55.486-08:00नया दिन .
"साल दर साल वही किस्सा है
कुछ न बदला है न बदलेगा, मगर
फिर भी इस साल से उम्मीदें हैं
ये गए साल से बेहतर होगा … "
हर नया साल, पुराने साल की टूटी किरचों पर पाँव रखता आता है। साल गुज़र जाता है जाने कितने विश्वास, न जाने कितने ही भ्रम तोड़ता, आस्थाओं पर उंगलियां उठाता, यकीनों में दरार पैदा करता हुआ। अपने भीतर की इस टूटन से कराह कर, कह बैठती है लेखनी -
"जैसे सोच की meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-50537448096889665392013-12-31T00:35:00.003-08:002013-12-31T00:39:55.500-08:00आने वाला पल जाने वाला है ...
सरगम में आज प्रस्तुत है किशोर कुमार जी की आवाज़ में गुलज़ार साहब का लिखा ज़िन्दगी का ये खूबसूरत फलसफा, फ़िल्म है गोलमाल, और संगीत आर. डी बर्मन साहब का है।
meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-28441410301601952382013-12-30T02:32:00.000-08:002013-12-31T00:39:55.484-08:00दिन
वही पुराना सूरज,
रोज़ आसमान के
ठीक उसी कोने से,
ऐन उसी वक़्त पर,
आँख मलता उगता है।
पास के दरख्तों के
पहचाने झुरमुट से
फूटता है चिड़ियों का
वह सुना-सुना कलरव …
दूर सड़क पर कहीं
दौड़ते शहर का
इक बदस्तूर शोर
जैसे बहती हो नदी कोई।
चाय के पहले कप की
ताज़ी गर्माहट में ,
और अखबार की बासी कड़वाहट में ,
तकरीबन
रोज़
उसी ढर्रे पर चलती है
धूल खाये लम्हों की
लम्बी फेहरिस्त जैसी
ज़िन्दगी।
ज़र्द चेहरा, meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-20174803281272254832013-12-30T02:26:00.005-08:002013-12-31T00:39:55.470-08:00दिन का दिन
बंद माचिस की डिबिया में
कई जलते दिन रखे है
सूरज में आग लगा
बुझ जाती है बारूद वाली तीली
बूढ़ा सर पर बोझ लिए
जलाता है अपना दिन...
दिन साँसे फूकता रहे
इसलिए फूँक लेता है
दो चार कश
और उड़ते धुए में दिन की तलाश करता है।
औरत जो जलते चूल्हे
में दिन डाल देती है
तवे पर सेक कर
अरमानो को किसी
कोने में छिपा देती है
थाली में वही सिका
हुआ दिन खट्टी चटनी से परोसती है ..
देखा है उसे नन्हे सेNeelamhttp://www.blogger.com/profile/07413658181522951376noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-87505495016772716372013-12-30T02:19:00.004-08:002013-12-31T00:39:55.507-08:00नया दिन
रोज़ एक नए दिन का पार्सल दरवाज़े पर छोड़ जाता है वो
रोज़ नया, अज्ञात , मोहक सा एक उपहार।
रज़ाई में लिपटी
पिछले कल का कोर अपने पैरों तले और दबाती हूँ
सुस्ताते हुए, कुछ जान बूझ कर
मैं अनदेखा करती हूँ, टालती हूँ
नया दिन अपरिचित, अंजाना, भय मिश्रित कौतूहल सा …
उठूँ, न उठूँ? यह चारा है क्या?
परदे से छनती हुई किरणें, बच्चों का चहचहाना, गाड़ियों का शोर-
नये दिन का आह्वानAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/12518068798632188578noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-2589491584627604252013-12-30T00:27:00.000-08:002013-12-31T00:39:55.479-08:00एक और दिन आएगा
एक और दिन आएगा , एक स्त्रियोचित दिन
अपनी उपमा में स्पष्ट, अस्तित्व में सम्पूर्ण
हीरा परख में , शोभायात्रा जैसा
धूपदार, लचीला, एक हलकी परछाईं के साथ।
किसी को भी नहीं आयेगी छोड़ कर जाने की इच्छा।
सारी चीज़ें अतीत से बाहर की ,
प्राकृतिक और वास्तविक
अपने पुराने लक्षणों की पर्यायवाची होंगी।
जैसे कि समय गहरी नींद सोया हो छुट्टी में …
एक और दिन आएगा , एक स्त्रियोचित दिन
भंगिमा में गीत जैसाmeetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-130961483379378441.post-53663306340658476382013-12-29T23:52:00.000-08:002013-12-31T00:39:55.502-08:00आज - आने वाले कल का बीता हुआ कल है
आज -
अतीत का भविष्य है।
आज -
भविष्य का अतीत भी है।
बीता हुआ कल
आज था
आने वाले कल का।
भविष्य का आज
अतीत का आने वाला कल होगा।
अतीत का अतीत क्या है ?
वर्तमान का वर्तमान क्या है ?
क्या है भविष्य का भविष्य ?
अतीत से बना है वर्तमान।
वर्तमान बना रहा है भविष्य।
इस क्षण का आज
आने वाले कल में गुज़रा हुआ कल होगा।
किन्तु अपरिचित है आने वाला कल।
अतीत की परछाईं वर्तमान है।meetahttp://www.blogger.com/profile/17389531274431732528noreply@blogger.com0