तब भी कुछ , कभी भी
रोक पाओगे नहीं .
यही दस्तूर है दुनिया का .
न तो ग़म ,
न खुशियों का कोई लम्हा
कभी रुकता है .
बह जाता है हाथों से ,
हथेली में लिया पानी हो जैसे ,
हाँ , कुछ छोड़ जाता है -
कोई हमशक्ल साया सा .
कहीं जो रूह में एक घर बना कर
रहने लगता है .
कभी कुछ खुद से बोलो तो ,
वो पेशानी पै बल डाले
सभी कुछ सुनता रहता है !
कभी चुपचाप बैठो तो ,
बहुत कुछ कहने लगता है !
मगर जैसा भी है
वो साया मेरे साथ चलता है ,
उन राहों में जहाँ पर
दूर तक कोई नहीं दिखता .
वो कोई दोस्त लगता है पुराना ,
मानो , बचपन का .
वो साया गुज़रे लम्हों का .
वो साया बीती बातों का .
मीता .
वो साया गुज़रे लम्हों का .
वो साया बीती बातों का .
मीता .
1 टिप्पणी:
meeta , loved it .saaya beeti baaton ka.. just like a fistful of sand which we cant ever grasp, yet every moment uska ehsaas rehta hai. beautiful
एक टिप्पणी भेजें