रविवार, 30 अक्तूबर 2011

साया बीती बातों का .


बहुत चाहोगे ,
तब भी कुछ , कभी भी 
रोक पाओगे नहीं .

यही दस्तूर है दुनिया का .
न तो ग़म ,
न खुशियों का कोई लम्हा 
कभी रुकता है .
बह जाता है हाथों से ,
हथेली में लिया पानी हो जैसे ,
या हवा हो !!


हाँ , कुछ छोड़ जाता है - 
कोई हमशक्ल साया सा .
कहीं जो रूह में एक घर बना कर 
रहने लगता है .
कभी कुछ खुद से बोलो तो ,
वो पेशानी पै बल डाले 
सभी कुछ सुनता रहता है !
कभी चुपचाप बैठो तो ,
बहुत कुछ कहने लगता है !

मगर जैसा भी है 
वो साया मेरे साथ चलता है ,
उन राहों में जहाँ पर 
दूर तक कोई नहीं दिखता .
वो कोई दोस्त लगता है पुराना ,
मानो , बचपन का .
वो साया गुज़रे लम्हों का .
वो साया बीती बातों का .   


                                    मीता .


                     

1 टिप्पणी:

Na ने कहा…

meeta , loved it .saaya beeti baaton ka.. just like a fistful of sand which we cant ever grasp, yet every moment uska ehsaas rehta hai. beautiful

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