चुपचाप, नंगे पैर, दबे पांव
पतझड़ से डंसी जमीन पर चलकर सर्दी
न जाने कब आकर मेरे आँगन में बैठ गयी
पता ही नहीं चला !
कोट की आस्तीनों से फिसल कर
ठण्ड सीने को जकड रही है ,
शायद कल सुबह सूरज का जमीर जाग जाये ,
पतझड़ से डंसी जमीन पर चलकर सर्दी
न जाने कब आकर मेरे आँगन में बैठ गयी
पता ही नहीं चला !
बरसातें क्या हुई कि दिन सिकुड़ गए
और रात का अँधेरा पांच पहर तक पसर गया .
रही सही कसर कोहरे ने पूरी कर दी .
कोट की आस्तीनों से फिसल कर
ठण्ड सीने को जकड रही है ,
मफलर से लिपटी है गर्दन फिर भी अकड़ रही है .
उँगलियों को शायद पाला काट रहा है ,
धीरे-धीरे हथेलियों से गर्मी चाट रहा है .
काम चोर अंगेठी बगलें झांक रही है ,
काम चोर अंगेठी बगलें झांक रही है ,
धुवाँ उगल रही है और कोयला फाँक रही है .
मैं फुंकनी से उसमें जान डाल रहा हूँ .
अब जली की तब जली ... ग़लतफ़हमी पाल रहा हूँ .
उम्मीद तो है मुझे कि आग मैं जला लूँगा ,
आज रात तो सर्दी से पीछा मैं छुड़ा लूँगा .
शायद कल सुबह सूरज का जमीर जाग जाये ,
दिन भर धूप खिले और ठण्ड भाग जाये .
1 टिप्पणी:
Beautiful word picture Skand . Loved this .
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