सोमवार, 19 दिसंबर 2011

कुरबतें - फासले / Distance in togetherness .



फासलों का ज़िक्र आते ही सबसे पहले जेहन में बशीर बद्र का ये शेर 
आता है -
" कोई हाथ भी न मिलाएगा , जो गले मिलोगे तपाक से ,
  ये नए मिजाज़ का शहर है , ज़रा फासलों से मिला करो ." 
        ... जाने क्यों फासलों के साथ जुड़ गया है ये ख़याल की कोई है जो हम से दूर है , कुछ है जो कहीं बिछड़ गया है ... मानो सिर्फ तकलीफ और अफ़सोस से जुडा हो ये लफ्ज़ ... लेकिन ऐसा भी तो सोचा जा सकता है कि कोई मुकाम है इस फासले के बाद जिसे पाना है ... कुछ अच्छा है , खुशनुमा है जो इंतज़ार कर रहा है इस फासले के दूसरे सिरे पर ...
         जैसे कि कुछ दिनों का ये फासला जिस पर हम फिर ले कर आये हैं ये ग़ज़लों , नज्मों और कविताओं का गुलदस्ता .... आप के लिए ...

                                               -  पुष्पेन्द्र वीर साहिल .

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फासले रह भी जायेंगे ...
फासले मिट भी जायेंगे ...

तुझे छूकर के ये जाना 
हूँ कितना दूर मैं तुझसे .
तेरी आँखें बताती है 
हैं कितने फासले मुझसे .

मेरी उँगलियों का जादू 
है तुझ पर नहीं चलता ...
मिलती हैं तो बस साँसें 
पर दिल नहीं मिलता .

तेरे मिजाज़ की ठंडक
सच,मुझको जमाती है 
तुझे बाँहों में ले कर भी 
कहाँ अब नीद आती है .

तेरे ये होंठ सौतेले 
क्योँ पतझड़ बुलाते हैं ...
मैं जब नजदीक आता हूँ 
क्योँ मुझ से दूर जाते हैं .

टीस बन खुशबू तेरी 
मुझ में समाई है 
ये एहसास देती है  
तू अब है पराई है .

जुड़े जुड़े से जिस्म हैं 
पर बात अधूरी है ,
है रूह जुदा जुदा 
कितनी ये दूरी है .

जा लौट जा अपने
अपने दायरों में तू ...
जहाँ तुझको गले लगाये 
फिर जीने की आरज़ू .

जहाँ हो ना कोई बंधन 
जहाँ रूह को चैन मिले .
शीशे में खड़ा वो अक्स 
जहाँ ना बेचैन मिले .

न होगा भरम मुझको 
कि कितने पास है तू .
मना लूँगा मैं खुद को 
कि बस एहसास है तू .

फासले रह भी जायेगे
फासले मिट भी जायेंगे 
जिस्म जुदा हो भी तो क्या 
हम रूह से मिल पाएंगे  

न तुझको छू सकूँगा मैं 
न दूरी का एहसास होगा  
रहमत बन तेरा अक्स  
जो मेरे जो पास होगा 


                           - स्कन्द .

PIC : Mrs Reina Swaroop 
/www.reinart.co.in
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                                कुरबतें .


बहुत सी गुलाबी बातें हैं .                               
पर ज़ाहिर है 
सब किताबी बातें हैं ...

मैं जानती हूँ 
और तुम भी ,
हम दो अलहदा जिस्म 
दो अलहदा दिमाग हैं ...
और कुछ भी नहीं है हम में 
एक जैसा .

हमारे दर्द 
हम अकेले जीते हैं ;
कह तो सकते हैं 
पर बांट नहीं सकते .
और ...
जैसे नींदों में 
कोई भी ख्वाब 
हम एक सा नहीं देखते ...
खुली आँखों से भी 
एक सा नहीं हो सकता 
हमारा कोई भी ख्वाब .

पर हां ,
तुम्हारे साथ चलना 
अच्छा लगता है .
बातों बातों में 
कट जाता है सफ़र ,
और पता नहीं चलता 
थकान का .

अजीब सी है न ये बात .
कुरबतें -
मिलती भी हैं 
तो फासलों के साथ !

               - मीता .

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इस शाम फासले फिर से 

एक शाम धुंधली सी,
चश्मे-नम सी सीली सी
सर्द-सर्द सीरत की,
उदास कुछ तबीयत की 
आज घिर के आयी है,
अपने साथ लाई है
दर्दे-जां वही फिर से,
आसमां वही फिर से

जब डूबते से सूरज ने 
सुर्ख रोशनाई से   
आसमां के आँचल पे    
रंगे-हिना बिखेरा था,  
सारा आसमां जैसे
रच गया हो मेंहदी से
क्या हसीन मंज़र था,
क्या हसीं नज़ारा था !

और वही हिना अपने 
हाथों में तुम रचाए हुए 
उस से मिलने आयी थीं,
जिस के संग जीने की 
जिस के संग मरने की
कसमें तुमने खायी थीं,

हाँ, उसने सुन लिया होगा 
जो तुमने कह दिया होगा,
दर्द यूँ बिछड़ने का
नज़रों से बह गया होगा,
यूँ साथ छोड़ देने की 
मजबूरियां रहीं होगीं,
अश्क़ों  में ढल गयी होंगी 
लाचारियाँ रहीं होगीं,

उन कांपते से हाथों में
बेजान उँगलियों ने फिर
कागज़ कई समेटे थे,
ये ख़त वही रहे होंगे
होठों से चूम कर तुमने
जो उसके पास भेजे थे,

कुछ देर उसके कांधे पे
तुम सर झुकाए बैठी थी  
आँखों में इक दुआ ले कर,
तुमको भूल जाने की
दुनिया नयी बसाने की
कसमों की इल्तिज़ा ले कर,

लरजे हुए से पाओं से
आँचल में मुंह छिपा अपना
वो घर को लौटना तेरा,
मुश्किल से ज़ब्त अश्क़ों का
भींची हुई वो मुश्कों का
धीरे से खोलना उसका.....



वो शाम ढल गयी आख़िर 
ये शामें ढल ही जाती हैं !
और हर तरफ अँधेरा था, 
मैं दूर फासले पे था 
उस शाम मैं पराया था 
उस शाम मैं अकेला था,

तुम मेरे पास आ न सकी 
तो मुझसे दूर क्या जाती !
मेरा नहीं ये अफ़साना,
फिर भी उदास रातों में 
क्यूँ बदस्तूर जारी है  
एक ख़्वाब का चले आना ?

इस शाम फिर वही सूरज 
इस शाम फिर हिना छाई 
इस शाम फिर वही रंगत,
इस शाम फिर अकेला हूँ
इस शाम फासले फिर से 
इस शाम फिर वही खिलवत........ 


                      - पुष्पेन्द्र वीर साहिल .


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चश्मे-नम = भीगी आँख
हिना - मेंहदी 
इल्तिज़ा = निवेदन
मुश्क = मुट्ठी 
खिलवत - एकांत 

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फासला .

जिंदगी का यही मतलब समझा किये
अब एक फासले से उन्हें देखा किये

कल करीब थे जान  तन की तरह
आज वो हमें गैर सा समझा किये

दुश्वारियां बढ़ी या वो निगाहे नीम हुई
शहद की तरह जिनका वजूद समझा किये

अब फासलें है शिकायत और एक टूटा दिल
जिसे ज़िन्दगी का आइना समझा किये

कुर्बतों का ये था आलम किसी दौर में जानां
हम खुद को उस बुत का हिस्सा समझा किये

        -   रश्मि प्रिया .


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कैसी कुर्बतें हैं...यह कैसे फासले !


अजीब तो है
यह तुम्हारे होने न होने का एहसास
दूर भी लगती हो कितनी
नज़र भी आती हो कितनी पास...


तुम कभी ख्वाब जैसे लगती हो
के तुमको देख तो सकता हूँ रूबरू
मगर बस छू नहीं सकता
मैं तुमको जी नहीं सकता
तुम्हारा दायरा अपनी हदों में सी नहीं सकता...
अजीब तो है
यह तुम्हारे होने न होने का एहसास


कभी तुम मेज़ पर रखे गुलाबों की तरह हो
तुम्हे मैं रख नहीं सकता
तुम्हारी खुशबुओं पर कोई रिश्ता ढक नहीं सकता
हाँ तुम्हे मैं डायरी में अपनी रख तो सकता हूँ
मगर सूखे हुए फूलों से कहाँ खुशबू आती है
ज़बरदस्ती के रिश्तों में न बरकत कोई आती है...
अजीब तो है
यह तुम्हारे होने न होने का एहसास


ज़हन में जब कभी
तुम्हारी यादों की नदी उफ़ान खाती है
पलकों की मुंडेरों से छलक कर
कुछ लहरें भाग जाती हैं
यह कैसी कुर्बतें हैं
यह कैसे फासले
तुम आँख में रहते भी हो
तुम आँख से बहते भी हो


तुम खुदा हो क्या कोई
कि तुमको चाह सकता हूँ ...
तुम्हे मैं पा नहीं सकता .
तुम्हारा अक्स अपनी आँख में गुदवा नहीं सकता .
यह कैसी कुर्बतें हैं ...
यह कैसे फासले !
तुम्हे मन मंदिर में रख तो सकता हूँ
तुम्हे मैं छू नहीं सकता
मैं तुमको पा नहीं सकता...


अजीब तो है
यह तुम्हारे होने न होने का एहसास...


                          - देव .
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                                     Symphony .


As a little life within you nurtured,
How very safe and loved I felt
Nine months you were always around me
Togetherness was at its best

And when after the tedious wait
I finally made a grand show
Your loving arms gently cradled me
Togetherness gave us that glow

Each baby step I took forward
Your heart with joy would squeal
The tiny hurt from each fall
Togetherness would made it heal

As school and childhood friends
Took over my time and yours
You juggled short sleep and long work
Togetherness helped handle chores

You gently nudged me to graduate
From GI Joe’s and racing cars
To Ruskin Bond and Xfiles
Togetherness helped make that start

Today when you woke me up
With warm hugs and milk on a tray
I know your heartstrings tugged
When I gently pushed you away

I told you I needed space, Mom
Told you I wanted to spread out
The bed’s too small for us both
And I now want to fly out

To spread out my nascent wings
Any try and fly the horizon
The values I’ve imbibed from you
Will surely give me a direction

Just give me your trust, Mom
As I’ve trusted you all these years
All I’m asking for is some space
To make mistakes and earn my tears

I’m still your same little boy
Scared of sleeping alone all through
Who left his room at midnight
And snuggled between you two

I’m still a little scared at thirteen
As I step into the outside world
And I’ll remember your warm touch
When strange people drive me cold

Just give me that little space, mom,
For we always have eternal togetherness
I promise you’ll see me blossom
To a full bloom from apparent nothingness

I promise I’ll come back to our shared music
As my individual string learn notes from cacophony
For only then will the spaces in our togetherness
Complement each other to create a special symphony
Love you, Mom!




- Sadhana .




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दरमियां फिर भी रहा 
         एक फ़ासलों का सिलसिला...




यूँ तो हर इक मोड़ पे मुझको वही साथी मिला
दरमियां फिर भी रहा एक फ़ासलों का सिलसिला .

मुझको उसके साथ पाकर पूछते हो क्या सवाल
क्या कहूं, कैसे कहूं, वो कौन था, वो क्यूँ मिला .

एक मीठी सी चुभन और एक भीगी सी नजर
एक पिछले ताल्लुक का, सिर्फ इतना सा गिला .

अब न पूछो देख कर उसको मुझे होता है क्या
दर्द के सुर में रवां हो कर कोई रेशा हिला .

पाक़ है ये दामने-जां, क्या हुआ जो चाक़  है 
देख लोगे तुम कहाँ है रंज़, ग़र इसको सिला .

सामने दुनिया के वो हंसके गले मिलता रहा
दरमियां फिर भी रहा एक फ़ासलों का सिलसिला .

                     - पुष्पेन्द्र वीर साहिल .

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आग सी जल गयी मेरे दिल की .


बढ़ गई तिश्नगी मेरे दिल की,
आग सी जल उठी मेरे दिल की।

वस्ल में कशमकश जगा बैठी,
धड़कनें खौलती मेरे दिल की।

फासले थे तो पुरसुकूँ दिल था,
साँस मिल के रुकी मेरे दिल की।

उसकी पलकें हया से हैं झिलमिल,
आज क़ुरबत मिली मेरे दिल की।

कँपकपाते लबों पे नाम आया,
फाख्ता है गली मेरे दिल की।

अब हमें रोकना न मुमकिन है,
धड़कनें कह रही मेरे दिल की।

शम्स दिल में हज़ार जलते हैं,
धूप कैसी खिली मेरे दिल की।

आज घर ताज से भी है उम्दा ,
हमनशीं मिल गई मेरे दिल की।

होश गाफिल हुआ, शबे कुरबत,
आ गई मनचली मेरे दिल की।

आज वो रंजो ग़म से वाबस्ता,
दास्तानें मिटी मेरे दिल की।

फासले कुरबतों में यूं बदले,
मिल गई हर खुशी मेरे दिल की।

                     - इमरान .

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इक फासला रहा ...

इतना करीब आ के भी इक फासला रहा 
ताउम्र ज़िन्दगी से मुझे ये गिला रहा .


जब हाथ बढ़ाया तो कोई पास नहीं था 
कहने को साथ साथ एक काफिला रहा .


तनहाई की हद जानने के बावजूद भी 
ऐसा गुमां हुआ है कि कोई बुला रहा .


इक आरजू कि आसमां को बढ़ के चूम लूं 
टूटे हुए परों सा एक हौसला रहा .


आँखों में कई ख्वाब टिमटिमाये , बुझ गए 
दिल में कोई अँधेरा सा अकसर जला रहा .


कुछ खास तो नहीं रहा साँसों का ये सफ़र 
बस धूप और छांह का इक सिलसिला रहा .


                         -  मीता .
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4 टिप्‍पणियां:

Leena Alag ने कहा…

My 1st mention 2day wld b at the choice of ths very touchin topic...i'd begin by sayin...rishton mein kam jab honslaa hotaa hai... dastaanay bayaan 'faaslaa' hota hai...distance in relationships is eventually very painful,willing or unwilling...sadhana ji has given it the shape of space..space to grow...n skand ji's beautiful poetry hints at ending it willingly rather than carrying the burden of a dead relationship...but all said n done it hurts at the grass root level...a stalemate situation mentioned in almost all the compositions...

"saamnay aaye mere,dekha mujhay,baat bhi ki
muskuraaye bhi,puraani kissi pehchaan ki khaatir

kal ka akhbaar tha,bas dekh liya,rakh bhi diya.
-GULZAAR
The wowest moments of readin were:

"न तुझको छू सकूँगा मैं
न दूरी का एहसास होगा
रहमत बन तेरा अक्स
जो मेरे जो पास होगा'

" अजीब सी है न ये बात .
कुरबतें -मिलती भी हैं
तो फासलों के साथ !"..♥

"उन कांपते से हाथों में
बेजान उँगलियों ने फिर
कागज़ कई समेटे थे,
ये ख़त वही रहे होंगे
होठों से चूम कर तुमने
जो उसके पास भेजे थे"

"दुश्वारियां बढ़ी या वो निगाहे नीम हुई
शहद की तरह जिनका वजूद समझा किये"

"कभी तुम मेज़ पर रखे गुलाबों की तरह हो
तुम्हे मैं रख नहीं सकता
तुम्हारी खुशबुओं पर कोई रिश्ता ढक नहीं सकता"

"Just give me your trust, Mom
As I’ve trusted you all these years
All I’m asking for is some space
To make mistakes and earn my tears"

"एक मीठी सी चुभन और एक भीगी सी नजर
एक पिछले ताल्लुक का, सिर्फ इतना सा गिला ".

"फासले कुरबतों में यूं बदले,
मिल गई हर खुशी मेरे दिल की। "जब हाथ बढ़ाया तो कोई पास नहीं था
कहने को साथ साथ एक काफिला रहा"........3 cheers 4 all of u!!!!....:)

manpreet ने कहा…

is gahraai se soch bhi loon to shabdon ki kami to hamesha raheti hai.ek aam admi aur kavi mein yahi antar hota hai.aap sabhi ki kavitayein behad khoobsurat hain

sangeeta ने कहा…

फासले दूरियों और नजदीकियों को बयां करते हैं. एक बार फिर आप सबने दिल मोह लिया. सब का अंदाज़े बयाँ खूबसूरत और चित्ताकर्षक है. साधना की कविता एक किशोर के दिल की पुकार लगती है. देव,स्कन्द मीता और रश्मि सबकी रचनाएँ फिर से दिल छू गयी. एक बार पढने से मन नहीं भरता. सबको बधाई.

meeta ने कहा…

@Leena thank you so much for your warm encouragement and your amazing lines
"rishton mein kam jab honslaa hotaa hai... dastaanay bayaan 'faaslaa' hota hai." It's a real pleasure reading your comment . All of us wait for it :-)

@Manpreet good to have a new reader ...it's very sweet and encouraging of you to leave this beautiful comment for all of us ...It encourages us to go on writing :-)

@संगीता जी आप हमें हमेशा सराहती आई हैं ... बहुत अच्छा लगता है कि आप हम सब को इतनी गहराई से पढ़ती हैं ... हौसला तो बढ़ता ही है...और लिखने की इच्छा भी होती है . कृपया पढ़ते रहिएगा और अपने विचारों से अवगत भी करते रहिएगा . धन्यवाद .

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