कभी बन कर जुगनूं, कभी बन कर तितलियाँ
उजालों के काफिले लिए , रंगों का कारवां बनाकर
हजारों मन्नते समेटे चाहत की पिटारी में
जिसे खोल कर बिखेर देती है वो मेरी वजूद पर .
मैं करवट बदलता हूँ , सपने रंग बदलते हैं
धानी और भी गहरा हरा हो जाता है
रंग मुस्कुराते हैं और मुझसे बात करते हैं
गोते लगता हूँ जब मैं नींद के समंदर में .
अक्सर शरारत वो ये मेरे साथ करते हैं
ना नींद टूटती है, ना उम्मीद
और रंग बदलते हैं रूप
और रंग बदलते हैं रूप
जब नींद के स्याह छलावे पर उतरती है तड़प की धूप .
कभी गालों पर सुर्ख रंगत बन कर उतरते हैं
कभी आँखों में सवेरा बन बिखरते हैं
कभी होंठों पर ओस बन कर उतर जाते है
कभी बन कर तेरा चेहरा मुस्कुराते हैं
कभी बन कर तेरे गेसू हवाओं को जान देते हैं ...
सपने ही बस ... अब तेरे चेहरे को पहचान देते हैं .
- स्कन्द .
- स्कन्द .
Painting : Mrs Raina Swaroop http://www.reinart.co.in/
2 टिप्पणियां:
zindgee nirantar ummeed bandhaatee hai
nirantar naye roop mein aatee hai
badhiyaa rachna
बहुत खूबसूरती से लिखा है .. सुन्दर प्रस्तुति
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