रविवार, 26 फ़रवरी 2012

वसंत .

                                              
१.


देखो तो 
इस बासंती बयार को 
एक डाकिये की तरह 
अनुराग के ख़त 
बाँट रही है 
और 
विरही भावनाओं की 
दुआओं की रेजगारी 
बटोर रही है .


  २.


जब  
प्रतीक्षा की वासंती धूप 
बहुत तीखी हो कर 
तपने लगी 
तो मैंने तुम्हारी 
सुधियों का 
छाता तान लिया .  


           - दिनेश द्विवेदी . 





कोई टिप्पणी नहीं:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...