रविवार, 25 मार्च 2012

जीवन यात्रा ....:)


ज़िन्दगी चलती रही
एक सफ़र पर
खट्टे मीठे से ...


कभी रौशनी के दरीचे
कभी निराशा का अँधा कुआँ
ज्यादा की सोच नहीं रखी
पर गड़ता रहा कसैला धुआं.


कदंम डगमगाए
तो सिर्फ तुम याद आये.
ईश्वर...
आखिर तुम तो देख रहे थे
सफ़र में शामिल थे कई लोग,
पर हमसफ़र तुम ही थे 
वीरानियाँ साथी बनी
तब भी तुम ही थे.


तुम्हारा हाथ हमेशा रहा साथ,
सिखाता रहा पाठ.
मिथ्या है सब कुछ
ना जायेगा साथ,
जब तक हो ........
जीवन गागर से स्नेह जल छलकाते रहो
नेह बांटो नेह पाओ ...
कुसुम कुंज महकाते रहो.


          राजलक्ष्मी शर्मा. 
         

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