सियाह अँधेरे में
दूर .... किसी रोशनी से तुम ,
उजालों का लिबास पहने
बाहें फैलाये ...
तुम धूप के रंग जैसे .
तेज़ गर्म लू के थपेड़ों में
ठण्डे झोंके से तुम
माथा सहलाते ...
हवा के रंग जैसे .
सूखे पपड़ाये होंठों पर
अमृत से बरसते तुम ...
रूह तक उतरते
तुम पानी के रंग जैसे .
यूँ
दीखते तो नहीं हैं तुम्हारे रंग !!
पर महसूस किया है तुम्हें
हर कदम ,
हर मोड़ पर ,
हमेशा अपने साथ ...
अपने संग .
- मीता .
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