सोमवार, 2 अप्रैल 2012

चरैवेति चरैवेति चरैवेति निरंतरम ......



सफ़र ज़िन्दगी का
कुछ यूँ बीता ..
कभी भरा भरा
कभी एकदम रीता


कही जगमगाती आशाएं
कहीं रंगीन मेले
कभी खूब सारे लोग
कभी रहे अकेले


कभी मन की कर ली
कभी दूसरों की सुन ली
कभी खूब अच्छी राह
कभी छोटी डगर पकड़ ली


सफ़र चलता रहा
बहते ढहते रहे
रौशनी की चाहत में
अँधेरे सहते रहे


आज सफ़र का हिसाब किया
अपना भी मन साफ़ किया
मिलता रहा बहुत कुछ
गंवाया क्या ये याद किया


दुआएं सब सिमट जाये
तुम्हारे साथ ही कट जाये
ज़िन्दगी की पहेली
सुलझ जाएगी
तुम साथ चलो बस
सुबह फ़िर आएगी


           राजलक्ष्मी शर्मा. 

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