सोमवार, 14 मई 2012

सावधानी हटी , दुर्घटना घटी ...

जीवन को सरलता, सफलता पूर्वक 
जीने के लिए 
किसी भी मोड़ का कोई तोड़ नहीं!

चाहे वो शारीरिक अंगों के मोड़ हों -
घुटनों, कोहनी, आँतों, शिराओं, 
धमनियों, नाड़ियों के मोड़ ...
वृक्षों की जड़ों,तनों के
पशु पक्षियों, कीट पतंगों की 
शारीरिक बनावट के 
उन्हीं में क्षमता निः सृत है 
हिलने डुलने की 
जीवन को गति देने की .

पहाड़ों, नदियों, नालों में 
सड़कों, रास्तों, बगियाओँ  में 
कहाँ नहीं है मोड़?
सारी सृष्टि 
मोड़ तोड़ का जोड़ ही तो है.

बचपन, यौवन, बुढापा 
यह भी तो मोड़ ही हैं.
धार्मिक, सामाजिक हों 
अथवा सांस्कृतिक, राजनैतिक कृत्य, 
परिवर्तनशील होने के फलस्वरूप 
मुड़ने के लिए बाध्य कर देते हैं सभी को .

परिवर्तन स्वयं ही मोड़ है 
जिसके अनुसार सावधानी पूर्वक मुड़ने से 
जीवन सार्थक होता है 
जो परिवर्तानानुसार सावधानी वर्तते हुए 
मुड नहीं पाता है ...
अस्तित्व खो बैठता है, 
पिछड़ जाता है .

स्थान स्थान पर पर्वती रास्तों में 
मोड़ों पर मुड़ने की हिदायतें मिलती हैं 
मोड़ कैसा है 
कितना तीव्र है .... आदि आदि .
इन मोड़ों से चालक की आँख हटी नहीं 
दुर्घटना घटी नहीं .
अब यदि 
मोड़ पर असावधानी बरतते 
अपनी गाडी को कोई 
हवा में ही उड़ा ले जाये 
उसके लिए फिर क्या कहा जाये !!

       - ललित मोहन पांडे . 




5 टिप्‍पणियां:

Pushpendra Vir Sahil पुष्पेन्द्र वीर साहिल ने कहा…

wow!! what an approach to life! Full of inspiration!

Na ने कहा…

how beautifully he has linked the Mod in real life to everything in creation..amazing meeta..now i know where all that poetry genes come from..you better be grateful to him, hai naa?

अनुपमा पाठक ने कहा…

All said and so well said!!!
Regards,

meeta ने कहा…

Thanks to all from his behalf. Sadhana di I owe everything to him :-)

atul ने कहा…

inspirational and very optimistic

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