हमारे मेहमान में आज हम स्वागत करते हैं सुनीता सनाढ्य पाण्डेय जी का, और आप के साथ साझा करते हैं उनकी यह रचना ...
कहीं झूलों की पींगें बढाता
कहीं थाली की जूठन हटाता ...
कहीं हवा में पतंगें लहराता
कहीं सड़कों से कचरा उठाता ...
कहीं चमकीली कारों में घूमता
कहीं बड़ा बन बच्चे घुमाता ...
कहीं रंग बिरंगी पोशाकों के रंग ढंग निराले
कहीं तन ढंकने को भी पड़ते हैं लाले ...
कहीं एयर कंडीशंड स्कूलों में बहकता
कहीं स्लेट और दरी को तरसता ...
तूने तो बनाये थे एक जैसे ही बच्चे
फिर किसने बनाया ये दोमुंहा बचपन !
- सुनीता सनाढ्य पाण्डेय .
कहीं झूलों की पींगें बढाता
कहीं थाली की जूठन हटाता ...
कहीं हवा में पतंगें लहराता
कहीं सड़कों से कचरा उठाता ...
कहीं चमकीली कारों में घूमता
कहीं बड़ा बन बच्चे घुमाता ...
कहीं रंग बिरंगी पोशाकों के रंग ढंग निराले
कहीं तन ढंकने को भी पड़ते हैं लाले ...
कहीं एयर कंडीशंड स्कूलों में बहकता
कहीं स्लेट और दरी को तरसता ...
तूने तो बनाये थे एक जैसे ही बच्चे
फिर किसने बनाया ये दोमुंहा बचपन !
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