रविवार, 22 जुलाई 2012

बारिशों के बाद.


आज कल घास गहरी हरी है
और जगह जगह
बेमतलब, बेमकसद
खिले जा रहे हैं सरफिरे फूल .
सब कुछ धुल गया है
बारिशों के बाद .


मोतियों सी चमकती हैं बूँदें .
घास पर चलो तो
भीग जाते हैं पाँव,
और ऊंचे देवदार के पेड़ों से
देर तक टपकता है
बूँद बूँद पानी .


सूरज छुट्टी पर है .
धुंध रहती है हर समय ...
कभी छंट भी जाती है,
तो डाल जाती है
नन्हा मुन्ना कोई बादल
पहाड़ों की गोद में .


पत्तों में छिपी
छोटी गीली चिड़िया
निकल आती है बाहर .
फड़फड़ा कर पंख
उडाती है बारीक बूँदें ...
सुखाती है खुद को .


मैं भी
बैठ जाती हूँ खिडकी पर
भूल कर
घर भर में फैले
गीले कपडे और सीलन की महक ...
और
साँसों में भर लेती हूँ
ठंडी, धुली, साफ़ हवा .


बस
कुछ दिन और
फिर बदल जायेगा ये मौसम
बारिशों के बाद .


        - मीता .

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