सोमवार, 20 अगस्त 2012

पसरी चुप्पियाँ ..


बहुत बार  
सुना है 
उस पहाड़ी पर बैठ कर 
तुम्हारी आवाजें 
जो पार कर आती हैं 
कितनी बस्तियों की छतें ...

बिलकुल पास आ जाते हो 
ऍन ढलते हुए सूरज के सामने 
कुछ क्षणों तक 
कुछ भी नहीं दिखाई देता 
कुछ भी नहीं सुनायी देता 
सुन्न सी पड़ जातीं हूँ 
अक्सर ...

और जब होश आता है 
तो एक चुप्पी 
और एक परिचित अँधेरा पसर जाता है 
मन के कोने कोने तक ... 

     - राजलक्ष्मी शर्मा .

      - 



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