सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

वो कविता है .



जो नंगे पैर तपती धूप में चलती है,
कविता है .
जिसके तन से  
मेहनत के पसीने की महक आती है,
कविता है .
जो अपने हक़ की खातिर जूझती लडती है...
कविता है .

जो देती है आवाज़  
दिल में दफ्न बातों को 
चाह कर भी होठों तक 
जो आने नहीं पातीं हैं ...
कविता है .

तनी भौहें भी कविता है,
भिंची मुट्ठी भी कविता है,
और वो चीख भी जो नींद से सबको जगाती है...
कविता है .

कविता वो भी है 
जो रात के काले अंधेरों में 
उजाले ढूंढती है,
और कहती है बढ़ो आगे, 
अभी कुछ और भी हैं आसमां जो तुमने छूने हैं .

कविता वो भी है 
जो कुछ नहीं कहती...
कहीं कोने खड़ी बस मुस्कुराती है...
और 
अकसर मुस्कुराती भी बिलावजह ही है शायद !

मगर ये भी तो सच है 
कि अगर वो मुस्कुराती है, 
तो ऐसा भी नहीं 
वो जानती ना हो 
कि इस दुनिया में, 
जिस में दर्द हैं इतने...
यहाँ पर मुस्कुराना कितना मुश्किल है ! 

मगर फिर भी 
अगर वो मुस्कुराती है...
तो कविता है .

       - मीता.

1 टिप्पणी:

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये. मधुर भाव लिये भावुक करती रचना,,,,,,
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति...

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