आज फिर शुरू हुआ जीवन .
आज मैंने एक छोटी सी ,सरल सी कविता पढ़ी ,
आज मैंने सूरज को डूबते देर तक देखा ,
आज एक छोटी सी बच्ची किलक मेरे कंधे चढ़ी .
आज मैंने आदि से अंत तक एक पूरा गान किया .
आज फिर जीवन शुरू हुआ .
शुक्रवार, 9 नवंबर 2012
तेरे मन्दिर का हूँ दीपक ...
सरगम में लता जी के अनुपम स्वर में पंकज मलिक जी का यह यादगार गीत प्रस्तुत है इस आशा के साथ की उस अद्वितीय की लौ हमारे भीतर चिर प्रकाशमान रहे और पथ प्रदर्शित करे -
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