बुधवार, 23 अप्रैल 2014

ओ पृथ्वी

छाती फाड़ कर दिखा सकता तो बताता
तुम्हारे लिए मेरे भीतर कितना प्यार है ओ पृथ्वी !

जो तुम्हें ध्वस्त कर, अपनी शक्ति का अनुमान लगाते हैं
दूसरों के मन में भय जगाते हुए
निर्भय और सुरक्षित होने का डंका बजाते हैं
क्षमा करो उन्हें, क्षमा करो पृथ्वी !

क्षमा करो और नए मनुष्य के शीश पर हाथ रख
आशीर्वाद दो कि वह इन आतताइयों के विरुद्ध
युद्ध में विजयी हो !
विजयी हो और
वनस्पतियों-पक्षियों-पशुओं और मनुष्यों के लिए
तुम्हारी शंकालु दृष्टियाँ ममतामय हो उठें एक बार फिर !
एक बार फिर तुम्हें सूर्यार्थ मिले !
फिर तुम्हें नया मनुष्य
शस्यात्मा और जीवन देही कह कर प्रणत हो !
एक नया श्रम
एक नयी शक्ति
एक नयी मनीषा
तुम्हारी कोख में जन्म ले ओ सृष्टि माध्यमे !
विनाश का सृजन के सम्मुख समर्पण अनिवार्य है अब।

छाती फाड़ कर दिखा सकता तो बताता
तुम्हारे लिए कितना  … कितना प्यार है
मेरे भीतर ओ पृथ्वी !

- शलभ श्रीराम सिंह  . 

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