माँ ... औरत का वह रूप है ,जो उसके भीतर बचपन से सांस लेता है , जो उसे सहेजना , समेटना , सम्हालना सिखाता है ... बचपन में नन्ही गुड़ियों को , फिर ज़िन्दगी को , रिश्तों को , परिवार को , अपनों को ....
निदा फाजली जी की लिखी ये नज़्म सुनते हैं
पंकज उधास जी की आवाज़ में और रूबरू होते हैं औरत के इस गरिमामयी रूप से -
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