आज फिर शुरू हुआ जीवन .
आज मैंने एक छोटी सी ,सरल सी कविता पढ़ी ,
आज मैंने सूरज को डूबते देर तक देखा ,
आज एक छोटी सी बच्ची किलक मेरे कंधे चढ़ी .
आज मैंने आदि से अंत तक एक पूरा गान किया .
आज फिर जीवन शुरू हुआ .
शुक्रवार, 4 नवंबर 2011
पंछी सभी हैं मूक
मूक रह गये हैं पंछी, यौवन सारा जाय।
वास तनो से टूट गए, तिनके हवा उड़ाय।
तिनके हवा उड़ाय, वन वस्त्रहीन हैं सारे,
मन के मृत नहीं पर, यह सूरज चाँद सितारे।
कोमल पत्ते आयेंगे, फिर गूँजेगी कूक,
एक आस में पंख छुपाय, पंछी सभी हैं मूक।
इमरान तुम्हारी पकड़ न सिर्फ उर्दू बल्कि हिंदी में भी बहुत गज़ब की है . ये तुम्हारी खासियत है की कविता में कोई fix style नहीं रखते.बहुत विविधता है तुम्हारी रचनाओं में.बहुत खूब .
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इमरान तुम्हारी पकड़ न सिर्फ उर्दू बल्कि हिंदी में भी बहुत गज़ब की है . ये तुम्हारी खासियत है की कविता में कोई fix style नहीं रखते.बहुत विविधता है तुम्हारी रचनाओं में.बहुत खूब .
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