शनिवार, 12 नवंबर 2011

गुलाबी फूल...


अस्तित्व की इस यात्रा में
ना जाने कितने बार रुके
और चले कदम .
कभी रास्ते आसान बनाते
छोटे छोटे पुल
तो कभी तेज जल धारा
और रास्तों में शूल .


पैर उखड़े ,गिरे
फिर सम्हले
सपने आँखों में उगते रहे
बुझते रहे
जिन्दगी के अर्थ समझते रहे .
अपने बनाये मिथकों को
तोड़ते रहे
गढ़ते रहे .


पर
जीवन की किताब में रखा
वो प्यार का गुलाबी फूल
ना कुम्हलाता है
ना मुरझाता है
ईश्वर के अनमोल उपहार की तरह
सब के ह्रदय घर बनाता है .
'उस पार' की यात्रा में
नए पुल बनाता है .


वही है
अपनी चमक से
अँधेरे में राह दिखाता है
परिस्थितिओं को ;बस' कर
जीना सिखाता है .


राजलक्ष्मी शर्मा. 
.

1 टिप्पणी:

अनुपमा पाठक ने कहा…

'उस पार' की यात्रा में
नए पुल बनाता है .
सटीक विम्ब चयन आपकी कविता की विशेषता है!

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