शनिवार, 12 नवंबर 2011

" उस पार "

हर खुशी का फूल अपने बाग में खिलता रहे।
जल रहा 'उस पार' कोई शौक से जलता रहे.

इश्क का पौधा मिरे 'उस पार' भी फलता रहे,
उम्र भर यूँ ही वफाओं का सिला मिलता रहे।

आपका 'उस पार' जाना भी हमें मन्ज़ूर है,
आमदों का ख़्वाब में' पर सिलसिला चलता रहे।

आपके पहलू में' है 'उस पार' मेरी जिन्दगी,
आपकी यादों से' मेरा हर अलम ढलता रहे।

चाहता हूँ आपको 'उस पार' आकर देखना,
कब तलक तड़पे जिगर दिल कब तलक जलता रहे।

मंज़िलें भी खुद ब खुद 'उस पार' से आ जाएँगी,
रूह में बस हौसलों का ज़लज़ला पलता रहे।

दूर जाना हैं हमें ऊँचे पहाड़ों से गुज़र,
कब तलक 'उस पार' जाने का अहद टलता रहे।

छोड़ भी दो सोचना 'इमरान' चलते हैं चलो,
लाख रुख़्ना अब हमारी राह में डलता रहे।

अलमः दुख
अहदः फैसला
रुख़्नाः रुकावट

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