शनिवार, 19 नवंबर 2011

कदमो की आहट


वो गहरा सन्नाटा, फैली ख़ामोशी
दूर कहीं... घुटे हुए शब्द
अवरुद्ध कंठ से हिचकोले खाते..
बाहर निकलने की जी तोड़ कोशिश मे
दबे दबे से..जब होंठों ने बुदबुदाये ,
उन्हें स्वर नहीं मिल पाए .

अनकहे को समझ पाता कौन?
उस मौन को पढ़ पाता कौन?
बहुत कुछ सिमटा था अक्षरों के अंतराल मे ,
बहुत कुछ फैला था शब्दों के जाल मे ,
दौड़ते भागते शब्द रास्ता नहीं ढूंढ पाए ;
डूबते उतरते रहे मन की नदी मे
अर्थ नहीं पा पाए .


अनकही उन बातो से
मन बोझिल हुआ जाता है ,
सुनसान रास्तो मे
कहाँ कोई आता है .


कही से भटकती
एक आवाज़ वहां पहुची ,
कोशिश की सुनने की
सब कुछ समझने की .
समझा तो जाना
मन को हिलाती सी ,
धीरे धीरे लडखडाती सी ,
कही दूर से आती सी ,
अनसुना गीत गुनगुनाती सी ,
ना वो अकुलाहट थी ना चाहत थी ...


वो थी तो सिर्फ और सिर्फ
मन के कदमो की आहट थी.

2 टिप्‍पणियां:

meeta ने कहा…

कही दूर से आती सी ,
अनसुना गीत गुनगुनाती सी ...
वो थी तो सिर्फ और सिर्फ
मन के कदमो की आहट थी. Beautiful!!

Na ने कहा…

उस मौन को पढ़ पाता कौन?
बहुत कुछ सिमटा था अक्षरों के अंतराल मे ,
बहुत कुछ फैला था शब्दों के जाल मे ,
दौड़ते भागते शब्द रास्ता नहीं ढूंढ पाए ;
डूबते उतरते रहे मन की नदी मे
Preeti you are so gifted.. laga jaisey saamey yeh shabdon aur chuppi ka khel chal raha ho.keep writing

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...