ऐसा गीत कहाँ से लाऊँ प्रिय ,
जो तुम तक पहुँचाऊँ .
शब्दों की सीमा होती है
मन की कोई थाह कहाँ ,
मन की पीड़ा पहुंचे तुम तक
ऐसी कोई राह कहाँ .
शब्द कहाँ सब सच कहते हैं
कैसे तुम को समझाऊँ !
ऐसा गीत कहाँ से लाऊँ प्रिय ,
जो तुम तक पहुँचाऊँ .
गह लेना तुम भेद ह्रदय के
भाव जहाँ पर चुक जाएँ .
पढ़ लेना नैनों की भाषा
शब्द जहाँ पर रुक जाएँ .
मेरा मौन समर्पित तुम को
शब्दों से क्या बतलाऊँ .
ऐसा गीत कहाँ से लाऊँ प्रिय ,
जो तुम तक पहुँचाऊँ .
शब्द जगत की बात कहेंगे,
मौन, ह्रदय का गीत मधुर .
मैं तुम संग जिस डोर बंधी हूँ
मौन वही है प्रीत मधुर .
शब्दों के ताने बाने में
ये डोरी क्यों उलझाऊँ .
ऐसा गीत कहाँ से लाऊँ प्रिय ,
जो तुम तक पहुँचाऊँ .
- मीता .
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