सोमवार, 28 नवंबर 2011

शब्दों का ताना बाना ... Weaving Words .



कभी दिल की बात बताते , तो कभी अपने मुखौटों में कितने ही राज़ 
छुपाते....झूठे-सच्चे , मीठे-खट्टे शब्द. शब्द जो माध्यम हैं ज़िन्दगी को महसूस करने का ; हमारे एहसासों को दूसरों से बांटने का. ये शब्द, जो कभी तो तूफ़ान खड़ा कर देते हैं , और कभी गुमसुम घबराए बच्चे की तरह किसी कोने में दुबक जाते हैं .
     इन रंग बिरंगे , छोटे बड़े , मीठे तीखे , नर्म नुकीले शब्दों से बुनते हैं हम ताना बाना हर दिन .....और भरते हैं मायने ज़िन्दगी में .

तो आज क्यों न फिर -


शब्दों की तितलियाँ पकड़ कर ,
भावों के पुहुपों पर धर कर ,
मीठा मीठा शहद बनाएं ....
रंग बिरंगी ढेरी से चुन ,
शब्दों के ताने बाने बुन 
कुछ कह दें , कुछ बात छुपायें ....


                       - मीता .


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नज़्म कोई जब भी लिखता हूँ . . .



कोहनी छिल जाती है 
घुटने घिस जाते हैं 
सीने पर चाबुक की तरह 
छप जाते हैं लफ्ज़ कभी 

नज़्म कोई जब भी लिखता हूँ 
शब्दों का ताना बाना बुनता हूँ 
खुद से मैं कितना लड़ता हूँ... 

दर्द उठाता हू जब दांतो से 
एक टीस ज़हेन में उठती है 
अल्फ़ाज़ खुर्रंत की तरह 
हौले हौले से उतरते हैं काग़ज़ पर 
ज़िद्दी, मुँहफट, बुड्ढे, अक्खड़ 
लफ़्ज़ों को तरतीब लगाकर 
माज़ी के सफ्हो से तोड़ा करता हूँ... 

नज़्म कोई जब भी लिखता हूँ 
शब्दों का ताना बाना बुनता हूँ 
खुद से मैं कितना लड़ता हूँ... 

मन की तपती हांड़ी में 
जब देर तलक पकते हैं ख़याल 
मैं हाथ डालकर मिस्रा मिस्रा 
नज़्म की माला बुनता हूँ... 

कटखनने हैं लफ्ज़ कई 
उनको लहू की आदत है 
रोज़ डुबा कर रगों में अपनी 
काग़ज़ पे चस्पा करता हूँ 

कुछ रूठे बैठे रहते हैं 
होठों की खिड़की से ताकते रहते हैं 
तितली की तरह उड़ते हैं कुछ 
फूलों की तरह खिलते हैं कुछ 
मैं बचता, लड़ता काग़ज़ पर 
यह रंग उकेरा करता हूँ... 

नज़्म कोई जब भी लिखता हूँ 
शब्दों का ताना बाना बुनता हूँ 
खुद से मैं कितना लड़ता हूँ... 



                         
                         - देवेश मठारिया .





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शब्दों का ताना बाना .



Same Words
Three Poems
Three Expressions

१.

हाथों में मेरे ,
बूँद ओस की
बस यूंही मुस्कुराती रही ,
कैसे जीनी है जिन्दगी  
ये मुझको सबक सिखाती रही .
भर कर आँखों में होंसले 
मुझ से नज़र मिलाती रही ,
छोटी से अस्तित्व में अपने 
सातों आकाश मिलाती रही .
सूरज चंदा तारे सारे  
इधर उधर छलकाती रही ,
श्रृष्टि का सब श्रृंगार समेटे 
मेरी हथेली सजाती रही .
हाथों में मेरे ,
बूँद ओस की
जब तक रही 
जिलाती रही .

२.

सातों आकाश 
के सूरज चंदा तारे 
हाथों में मेरे सिमट गए 
छोटे से अस्तित्व में
एक ओस की बूँद के .
मुस्कुराहट छलकाती वो ,
सृष्टि श्रृंगार सजाती वो ,
जीना कैसे है 
सिखलाती वो सही ,
सजी हथेली पर मेरे वो 
एक बूँद ओस की 
जब तक रही .

३.

बूँद ओस की 
एक 
चंदा तारे आकाश 
खुली हथेली मेरी 
जीने का आभास .

श्रृंगार सजाना 
मुस्कुराना 
ऑंखें मिलाना 
जीना सिखाना .

सातों आकाशों का अस्तित्व 
एक बूँद में सिमट जाना 
बूँद ओस की 
एक 
चंदा तारे आकाश 
खुली हथेली मेरी 
जीने का आभास .


                     - स्कन्द .


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चलो आज ...


चलो मन को साफ़ करें
दिन खोल के आज बात करें
अच्छे शब्दों को चुन के
उनके ताने बाने बुन के
मन को आल्हादित कर दे जो
ऐसा हम कुछ ख़ास करें.

तुमने कई सन्दर्भ दिए हैं
चलो आज व्याख्यान करें...

तुमने कहा साथ निभाने
ख़ुशी के गीत गाने को
उठो ऊँगली पकड़ो
चलने की शुरुआत करें.
तुम वीणा के तारो को छेड़ो
हम अपना स्वर-भाग करें .

तुमने कई सन्दर्भ दिए हैं
चलो आज व्याख्यान करें....

तुमने कहा धरा का चलना
सूरज ढलना किरने पिघलना.
उगते हुए सूरज का
आवाहन करें
पिघली हुयी किरणों को 
जीवनदान करें 
धरती जो धारित करती है
गति को, उसका गान करें.

तुमने कई सन्दर्भ दिए हैं
चलो आज व्याख्यान करें...

तुमने एकाकी सावन औ'
सूने बसंत की बात कही
पतझर मे गिरते पत्ते
और गर्मी देखी उमस भरी.
सावन की बौछारों
बसंत की पीली पीली सरसों 
गर्मी की लम्बी लम्बी
ढलती शामो की बात करें.

तुमने कई सन्दर्भ दिए हैं
चलो आज व्याख्यान करें...

देखा आँखों मे सूनापन 
देखा मन का एकाकीपन
देखा भूला भटका बचपन.
मन का रीतापन 
कभी कोई भर पाया था
भूल गए?झील सी आँखों मे
तुम्हे चाँद नज़र आया था.
बचपन बीता जो हंसी ख़ुशी
चलो उसको याद करें.

तुमने कई सन्दर्भ दिए हैं
चलो आज व्याख्यान करें.
अच्छे शब्दों को चुन के

उनके ताने बाने बुन के.....


                 - प्रीति .




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शब्दों का ताना बाना .


खण्ड खण्ड है मेरे शब्दों का ताना बाना,
आज पड़ेगा मुझको नैनों से गीत सुनाना।


आशाओं का दिल में जमघट लगा हुआ है,
प्रियतम ने आने का वादा किया हुआ है।
धक धक करता जाये,दिल मेरा शोर मचाये,
आने वाले हैं वो अब मुझसे रहा न जाये।


मन के हर कोने में है दीपक मुझे जलाना,
आज पड़ेगा मुझको नैनों से गीत सुनाना।


गदगद है मन मेरा खुद को सजा रही हूँ,
बैठी हूँ , खुशियों की वीणा बजा रही हूँ,
हर्षित है तन मेरा यादों को तेरी छूकर,
आज खुशी में नाचूँ मैं अंतरिक्ष के ऊपर,


मन रे सुंदर कोई तू संगीत बजाना,
आज पड़ेगा मुझको नैनों से गीत सुनाना।


खण्ड खण्ड है मेरे शब्दों का ताना बाना,
आज पड़ेगा मुझको नैनों से गीत सुनाना।
                                 
                                        - इमरान .


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Riveted!





Each night as I sit in the hallway
Of long forgotten dreams
And watch the icicles of desire
Drip onto a lonely roadside
Giving life to those trees
Where your words hang
Words of promises, of dreams
Of shared lives and common themes
And I reach out to hold each one
Gently caress it with closed eyes
And a story springs alive
Of the time and the place
And the love on your face
When you said those words
Caressing words
Embracing words
Tickling words
Hopeful words
Musical words

Unsaid words

And silence between them
Woven into this rich tapestry
Of a life that would be
Now caught in the jagged edges
Of your material aspirations
And lost sensitivity
See how it flutters in the wind
Frayed edges of bleached dreams
Where did we forget?
The right weft and weave
The giving and the taking
Recognition and respect
The love and the tenderness
The holding tight and letting go
Now I stand there haunted
Chained by your woven words
Bound by aborted dreams
At the crossroads of time
Waiting for your return
In that deserted street
Of a life that isn’t,
Riveted!




- Sadhana .




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क्षणिकाएं ...


शब्दों के ताने बाने


सूरज की किरने समेटे


लुटाएं रौशनी के खजाने




****


शब्दों के ताने बाने


रचनात्मकता के आवरण


जीवन के कुछ किस्से पुराने




*****


शब्दों के ताने बाने


दबे ढके शब्दों में मन की बात


नज़्म या कविता के बहाने


*****


शब्दों के ताने बाने


कुछ कल्पित ,कुछ सच्चे


किस्से सबको सुनाने


******


शब्दों के ताने बाने


थका आतप मन


पर उम्मीदों पर निशाने


*****


शब्दों के ताने बाने


बुनते सजाते लोग


शब्दों में ढूंढे जीने के बहाने




                         -  रश्मि प्रिया .


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ऐसा गीत कहाँ से लाऊँ ...



ऐसा गीत कहाँ से लाऊँ प्रिय ,
जो तुम तक पहुँचाऊँ .

शब्दों की सीमा होती है 
मन की कोई थाह कहाँ ,
मन की पीड़ा पहुंचे तुम तक 
ऐसी कोई राह कहाँ .
शब्द कहाँ सब सच कहते हैं 
कैसे तुम को समझाऊँ !


ऐसा गीत कहाँ से लाऊँ प्रिय ,
जो तुम तक पहुँचाऊँ .

गह लेना तुम भेद ह्रदय के 
भाव जहाँ पर चुक जाएँ .
पढ़ लेना नैनों की भाषा 
शब्द जहाँ पर रुक जाएँ .
मेरा मौन समर्पित तुम को 
शब्दों से क्या बतलाऊँ .


ऐसा गीत कहाँ से लाऊँ प्रिय ,
जो तुम तक पहुँचाऊँ .

शब्द जगत की बात कहेंगे 
मौन, ह्रदय का गीत मधुर .
मैं तुम संग जिस डोर बंधी हूँ 
मौन वही है प्रीत मधुर .
शब्दों के ताने बाने में  
ये डोरी क्यों उलझाऊँ .


ऐसा गीत कहाँ से लाऊँ प्रिय ,
जो तुम तक पहुँचाऊँ .


                     -  मीता .




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तुम आओगे  i!?

१.

जब 
तुम आओगे
संग लाओगे
नई सुबह 
नया उजाला 

फिर से 
हरी होगी 
दूब
मेरे आंगन की 
पिघलेगा 
सदियों का पाला

पंछी
फिर से आएंगे
संग 
वो अपने लायेंगे 
वसंत 
अंधेरों ने जो था 
टाला

आजाद 
गगन में 
उड़ जाऊँगा 
जब नहीं रहेगी 
कोई बंदिश 
कोई ताला

जब 
तुम आओगे
संग लाओगे
नई सुबह 
नया उजाला .


२.

जब
सुबह होगी
उजाला अंधेरों से 
आजाद होगा 
कोई बंदिश 
कोई ताला
नहीं रहेगा  
पिघलेगा 
पाला सदियों का
आएंगे फिर से 
पंछी जो
लायेंगे 
अपने संग
नया 
वसंत 
मेरे आंगन

तुम आओगे ?





३.

कोई बंदिश 
कोई ताला
अँधेरा 
नहीं रहेगा 
मेरे आंगन 

पिघलेगा पाला
नया उजाला 
नया वसंत 
फिर से आएगा 
आजाद गगन में 
उड़ते पंछी 
संग लायेगा 

तुम आओगे !


            -  स्कन्द .


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लफ़्ज़ों का ताना-बाना .







एक फिसलन भरा एहसास लौट आता है 
मेरे हाथों से छूटते तुम्हारे हाथों का 
एक हल्की सी सिहरन भी याद आती है
या वहम था मेरी उँगलियों के पोरों का?

बहुत दूर  तक दिल ने पलट-पलट देखा
नज़र में भाप बन नमी जो उमड़ आयी थी.
कोई ख़ामोश मगर तल्ख़ सा सवाल लिए
निगाह एकटक ठहरी सी नज़र आयी थी.

बड़ा अज़ब सा है सवाल, मगर है तो सही 
जाने क्या तुमने मुझे खोके पा लिया होगा?
कभी  पुरानी गठरियाँ टटोल कर देखा  
छिपा के मुझसे क्या तुमने बचा लिया होगा?

जाने क्या हो छिपा, धीरे से गाँठ सुलझाना
महज ख़याल नहीं, याद का ख़जाना है.
मुझे यकीन है महफूज़ वहां नाजुक सा 
बड़ा ही कीमती लफ़्ज़ों का ताना-बाना है.

            - पुष्पेन्द्र वीर साहिल .

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14 टिप्‍पणियां:

Reena Pant ने कहा…

यूँ ही नहीं बनता
शब्दों का ताना बना
कितने एहसास
जी के मरते है
और फिर जीते है
हर एहसास में तड़प एक उठती है
दिल के तार बजते है
दर्द की बारिशों के बीच
या फिर ख़ुशी की लहरों में
थकी और बुझी सांसो के बीच
कई बार उलझते
कभी गिरते
कभी उठते बनते बिगडते
बनता है ताना बना
कुछ शब्दों का

अनुपमा पाठक ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति!
शब्दों का ताना बाना और अभिव्यक्ति का विस्तृत आकाश!!!
सभी रचनाकारों को बधाई!

meeta ने कहा…

@Reena pant- रीना दी , आप का कमेन्ट इतना खूबसूरत और हमारे विषय का पूरा सार लिए हुए होता है ... न केवल हमारा हौसला बढ़ता है बल्कि पढ़ कर आनंद आ जाता है . धन्यवाद आप का :)

@Anupama pathak - आप का हार्दिक धन्यवाद अनुपमा जी .

Giribala ने कहा…

बहुत सुन्दर रचनाएँ! मन को छूकर पिघला देने वाली! इन्हें फिर दोबारा पढ़ना पढ़ेगा....

पुरुषोत्तम पाण्डेय ने कहा…

अति सुन्दर, सरल शब्दों में गहन अर्थों वाली रचना, मनभावन हैं. ये सारा का सारा ताना-बाना ही तो है जिस पर सब का अस्तित्व टिका हुआ है. बधाई.

बेनामी ने कहा…

@shweta pandey : truly beautiful poem by Devesh..keep the good work going :))

बेनामी ने कहा…

very good poem. touch by heart like a cool morning wind. very good bhai.

बेनामी ने कहा…

very good

meeta ने कहा…

@पुरुषोत्तम पाण्डेय जी - धन्यवाद.चिरंतन में आप का हार्दिक स्वागत है. आप स्वयं बहुत ही अच्छा लिखते हैं.कृपया हमें पढ़ते रहिएगा और मार्ग दर्शन देते रहिएगा .

meeta ने कहा…

@Shweta pandey - Thanks for appreciation.Devesh is a very promising poet.Hope you will be able to read more of his poems in Chirantan .

@Benaami - Thanks a lot. But please do share your name with us in future.We hope you'll keep reading us.

Pushpendra Vir Sahil पुष्पेन्द्र वीर साहिल ने कहा…

आप सभी का धन्यवाद सराहने के लिए.. आशा है आप ऐसे ही हमारे ब्लॉग पर आ कर हमारा उत्साह वर्धन करते रहेंगे..

leena alag ने कहा…

what a difficult topic...WORDS...indispensable n yet lyk sand...the more u try n grasp them the more they leave u dumbfounded n tonguetied...loveeeeeed the introduction by u meeta,"ये शब्द, जो कभी तो तूफ़ान खड़ा कर देते हैं , और कभी गुमसुम घबराए बच्चे की तरह किसी कोने में दुबक जाते हैं "...how utterly true...i think this is the most daunting topic so far n each one of u has given a completely different interpretation but then everyone also seemsed to agee that though words are important they might not always do justice to feelings...a very big congratulation to devesh ji 4 an amazing composition in the 1st go... n meeta, girl you have written so so so brilliantly..."गह लेना तुम भेद ह्रदय के
भाव जहाँ पर चुक जाएँ .
पढ़ लेना नैनों की भाषा
शब्द जहाँ पर रुक जाएँ .
मेरा मौन समर्पित तुम को
शब्दों से क्या बतलाऊँ"
lovd skand ji's playing wid words in three different formations widout affectin the feel...
words are like a spider's web...when seen from a distance u can just admire the artist's architectural skills but when u try n observe closely u are bound to get entangled in their nuances,their ease n depth of expression n the artistic skill..."CHIRANTAN" is one such web n for people lyk us thr is simply no escaping it...cheers to one n all!...:)

meeta ने कहा…

Leena heartiest thanks for your lovely comment. You inspire us to work harder and write better.Stay with us always.

leena alag ने कहा…

"words r tears that have bin written down...tears are words that need to b shed...widout them,joy loses all its brilliance n sadness has no end"...its lyk bottled up emotions vich when uncorked flow out with all their effervescence in the form of words...:)

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