रविवार, 11 दिसंबर 2011

शाम का धुआं - मेरा आईना



धुऐं में तस्वीर बनाकर हम, तेरे करीब हो जाते हैं..
शाम के धुऐं में अपने अज़ीज़ पाते हैं .


टुकड़े-टुकड़े होकर हम अलफ़ाज़ से जुड़ जाते हैं..
धुऐं की मंजिल तू बदल.....तेरा आसमान सजाते हैं..



तुझे नज़र से बचाने को, तिल-ओ-हुस्न बन जाते हैं..
धुऐं में तस्वीर बना कर हम, तेरे करीब हो जाते हैं..


इन धुंधली रातों को नया आयाम देते हैं,
जाने क्यूँ हम बेवफ़ा गलियों में, वफ़ा तलाश करते हैं..


तेरे रुखसार को देखते हैं हर बार पहली बार..
रब्त जुड जाता है, अपने धुँएं के साथ


रंज-ए-रुया नहीं, इश्क का इफ्तिताह पाते हैं
धुँएं में तस्वीर बना कर हम तेरे करीब हो जाते हैं..


हर शाम के धुँएं को आईना..और आईने को तकदीर बना जाते हैं
इस धुँएं को दम-साज़ बना, तुझे और जी जाते हैं!!


शाम का धुआं चाहे दीदा-ए-तर बने, तेरे करीब हो जाते हैं..!!


                                              - सुमित उप्रेती .


रब्त - connection
रंज-ए-रुया - vision, full of grief
इफ्तिताह - honour
दम-साज़ - companion
दीदा-ए-तर - eye full of tears

1 टिप्पणी:

akash joshi ने कहा…

kya baat hai bhai....bahut acchha likha hai.."इन धुंधली रातों को नया आयाम देते हैं,
जाने क्यूँ हम बेवफ़ा गलियों में, वफ़ा तलाश करते हैं.." just luv dese lines.. :)

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