सोमवार, 19 दिसंबर 2011

कुर्बतें .

बहुत सी गुलाबी बातें हैं 
पर ज़ाहिर है 
सब किताबी बातें हैं ...


मैं जानती हूँ 
और तुम भी ,
हम दो अलहदा जिस्म 
दो अलहदा दिमाग हैं ...
और कुछ भी नहीं है हम में 
एक जैसा .

हमारे दर्द 
हम अकेले जीते हैं ;
कह तो सकते हैं 
पर बांट नहीं सकते .
और ...
जैसे नींदों में 
कोई भी ख्वाब 
हम एक सा नहीं देखते ...
खुली आँखों से भी 
एक सा नहीं हो सकता 
हमारा कोई भी ख्वाब .


पर हां ,
तुम्हारे साथ चलना 
अच्छा लगता है .
बातों बातों में 
कट जाता है सफ़र ,
और पता नहीं चलता 
थकान का .


अजीब सी है न ये बात .
कुर्बतें -
मिलती भी हैं 
तो फासलों के साथ !


               - मीता .









2 टिप्‍पणियां:

Nirantar ने कहा…

behad khoobsoorat ,
bahut kuchh alag hote huye bhee
saath achhaa lagtaa
yathaarth
lucky are those who ekperience this

meeta ने कहा…

Rajendra ji many thanks for this lovely comment !! Sorry for the delay in replying .

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