गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

मन मेरे


मन मेरे 
तू सीख हवा से 
विस्तृत होना ...
बहते जाना .
पोंछ स्वेद कण ,
कड़ी धूप में 
बिना भेद 
हर राही का मस्तक सहलाना .



सुख की हरियाई कोंपल छूना ,
सरसाना .
दुःख के पीले पातों को 
कुछ दूर उड़ा कर ले जाना ,
पर 
बंधना नहीं वृक्ष से किंचित ...
बहते जाना .


मेरे मन 
पीड़ा है बंधन ,
रुक जाना मृतप्राय है बनना ;
मुक्ति मार्ग यदि है कोई ...
तो है बहना ,
है आगे बढ़ना .


तोड़ स्वयं निर्मित कारायें ,
बाहर आ .
मत रुक चाहे कैसी भी दीवार मिले ,
बस बहता जा .


नहीं सरल -
फिर भी कोशिश कर ...
बन जा तू उन्मुक्त हवा .


                         -  मीता .

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