शनिवार, 7 जनवरी 2012

आज भी .

शायद किसी उम्मीद पै जिंदा हैं आज भी .
ख्वाबों को यों तो अलविदा कहा है आज भी .



वैसे तो मुद्दतें हुईं उनको गए हुए 
इक दर्द सा दिल में धड़क रहा है आज भी .


सूखे हुए कुछ फूल रखे हैं सम्हाल कर 
इक ख़त किसी किताब में दबा है आज भी .


ये कौन सा मौसम ठहर गया है रूह में 
कल भी तो दिल उदास था , रोया है आज भी .


थी राह , तो चलना मेरा भी लाज़मी ही था .
क्यूँ दिल उसी मकाम पर खड़ा है आज भी .


                                  - मीता.

1 टिप्पणी:

Nirantar ने कहा…

insaan toot jaataa hai
khwaab nahee

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