चमन उम्मीदों का खिज़ा में उग आता है
एक गिरता हुआ मन फिर संभल जाता है
ठोकरें खाकर ही आता है हुनर जीने का
अनुभव हमारा हरदम यही समझा जाता है
सच मानो रोज सीखती हूँ एक पाठ नया
कोई अन्दर मेरे एक आशा जगा जाता है
उगेगा फिर कल एक उम्मीद का सूरज
एक ढलता हुआ दिन समझा जाता है
पड़ जाए ठंडी गर आग आरजुओं की
तो ‘बशर’ बस बरफ सा बन जाता है
राजलक्ष्मी शर्मा.
............
* ‘बशर’ = इंसान, व्यक्ति .
एक गिरता हुआ मन फिर संभल जाता है
ठोकरें खाकर ही आता है हुनर जीने का
अनुभव हमारा हरदम यही समझा जाता है
सच मानो रोज सीखती हूँ एक पाठ नया
कोई अन्दर मेरे एक आशा जगा जाता है
उगेगा फिर कल एक उम्मीद का सूरज
एक ढलता हुआ दिन समझा जाता है
पड़ जाए ठंडी गर आग आरजुओं की
तो ‘बशर’ बस बरफ सा बन जाता है
राजलक्ष्मी शर्मा.
............
* ‘बशर’ = इंसान, व्यक्ति .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें