आज फिर शुरू हुआ जीवन .
आज मैंने एक छोटी सी ,सरल सी कविता पढ़ी ,
आज मैंने सूरज को डूबते देर तक देखा ,
आज एक छोटी सी बच्ची किलक मेरे कंधे चढ़ी .
आज मैंने आदि से अंत तक एक पूरा गान किया .
आज फिर जीवन शुरू हुआ .
शनिवार, 11 फ़रवरी 2012
तुम्हारा चेहरा .
तुम्हारे चेहरे के निर्मल दर्पण में
मेरा अपना प्रतिबिम्ब ' देव - निर्माल्य ' सा निष्पाप - निष्कलुष नज़र आता है .
तब मेरी कुआंरी आत्मा तुम्हारी दृष्टि के परस से सिहर- सिहर , सिमट आती है .
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