शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

खोना पाना - Life in a nutshell .


पहले खोना खुद को ....और खो कर खोजना .... खोजने में खो जाना ....और तब जा कर पाना ....किसी और को ....और फिर रहना परेशान .... कि कहीं फिर न खो जाए ....
ये बात है तो गड्डमड्ड ....कुछ हद तक ऊलजलूल भी ! पर इश्क की एक परिभाषा कुछ ऐसी भी हो सकती है. आप इस से असहमत होने के लिए आज़ाद हैं ....लेकिन मन में ही सही, स्वीकार तो करेंगे कि हाँ ये खोना - पाना, इस खोने- पाने की कहानी ...इतनी आसान नहीं है बयान करना ....और ये भी तो ज़रूरी नहीं कि तमाम दास्तानें जो हैं खोने पाने की - उनकी रूह में इश्क ही रवां होता हो. क्योंकि इस दुनिया में बहुत कुछ है खोने को और बहुत कुछ है पाने को. सवाल ये है कि आप क्या चाहते हैं ?

                                       - पुष्पेन्द्र वीर साहिल .
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तुम्हारे मेरे बीच ...  
                
तुम्हारे और मेरे बीच
कविता ही तो होगी
संवाहक - दूती - संवदिया .
कविता ही तो बनेगी पुल
जिसके नीचे बहते
समय के सतत प्रवाह को लांघ
रोज़ तुम तक आऊंगा .
पाऊंगा तुम्हें ,
फिर लौट आऊँगा
अपने आप को खो कर .


             - दिनेश द्विवेदी .
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खोया क्या ... पाया क्या !!! 

Old_diary : Old antique vintage paper backgroundखोने और पाने का 
कोई तो नाता है .
अकसर ऐसा हो जाता है
जो भी शिद्दत से पाना चाहें ...
खो जाता है !

साथ साथ चलते हैं दोनों
पूरी तरह न कभी कुछ खोया ;
न ही कुछ पाया .

पाते ही खो गया
जो भी पल हाथ आया .

लम्बे सफ़र में
खोया क्या ,पाया क्या
अब कहाँ इतना याद !

बस ये समझ आया ,
जो कुछ भी पाया
उसे पहचाना ...
मगर
खो जाने के बाद .

                        - मीता .

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उसे खोने में भी पाने का मज़ा आया है ...



Day And Night  : Day and night tree (other landscapes are in my gallery) Stock Photo
वो मेरा हो न सका पर मेरा हमसाया है,
मैंने खोके भी हर इक राह उसे पाया है।

उसकी आँखों में वफाओं का निशाँ तक भी नहीं,
बेवफा है वो मगर मुझ पे वही छाया है।

जो भी मिलता है मुझे वो ही बिछड़ जाता है,
मुझपे किस्मत ने हमेशा ये सितम ढाया है।

मुझको तन्हाई से बढ़कर कोई हमदम न मिला,
इसने बस प्यार किया औरों ने ठुकराया है।

दिले ग़मगीं में भी वो बनके खुशी रहता है,
उसे खोने में भी पाने का मज़ा आया है।

                         -  इमरान .

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खोया ... पाया .
Sunbeams : beautiful red tulip in sunbeams against cloudy sky




समय की कसौटी पर खुद को आजमाया 
अब क्या हिसाब करूँ ये खोया वो पाया .

उम्र के इस पड़ाव पर आज यही विचार आया
'वही'संजोता सब कुछ जिसने ये जहाँ बनाया
.............क्या हिसाब करूँ ये खोया वो पाया .



हाँ कुछ पल कठिन थे ,कुछ देर से गुजरे
निशानियाँ बची है जब 'उसने ' आजमाया
.............क्या हिसाब
करूँ ये खोया वो पाया .




गर आँचल के कोर में बंधे खुशियों के पल
वैसा ही लिया जीवन जैसा 'उसने' थमाया
...........क्या हिसाब करूँ ये खोया वो पाया .



बहुत ही ईमानदारी से 'वो' करता है हिसाब
जो दिया जिंदगीकोबिलकुल वही लौटाया
.......अब क्या हिसाब करूँ ये खोया वो पाया .

 
                                                 -  रश्मि प्रिया .

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उसको पाने के हालात नहीं बन पाए ...

खुदको खोने के ज़ज़्बात नहीं बन पाए .               
Loneliness : Lonely Man Sitting Next to a Lakeउसको पाने के हालात नहीं बन पाए .

मैंने तकलीफ़ बड़ी देर तक रोके रक्खी 
फिर भी रोने के हालात नहीं बन पाए .

ख़ुश्क आँखों के अश्कों में असर क्यूँ होता  
उसके दिल में वो बरसात नहीं बन पाए .

लफ्ज़ मांदा थे, रस्ते में कहीं जा बैठे 
उसको सुननी थी जो बात नहीं बन पाए .

किसी ख़ामोश सफ़र पे मिरे एहसास रवां
यूँ तो काफी थे, बारात नहीं बन पाए .

मिलने आये हैं गिले बनके बीते लम्हे
क्या कहूं, क्यूँ ये मुलाक़ात नहीं बन पाए .
                 
                 - पुष्पेन्द्र वीर साहिल .
......

मांदा - थके हुए
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अल्लाह देखो मेहेरबां है .

Thorns : Rose thorn मेहेरबां है मेहेरबां है                                       
अल्लाह देखो मेहेरबां है
यह धूप भी उजली सी  छांह है
अल्लाह देखो...
मेहेरबां है...

रातें देखो ढल रही हैं
उम्मीद की लौ जल रही हैं
रोशन ही रोशन अब जहाँ है
अल्लाह देखो मेहेरबां है...

बोया है हमने फूल 
तब ही पाई है खुशबू यहाँ .
कांटे कांटे बस लहू है ...
ज़ख़्मी खुदा की आरज़ू है
अम्न का मौसम कहाँ है

अल्लाह फिर भी मेहेरबां है...

पर कटे हैं पंछियों के
हौसले उड़ते कहाँ हैं !
आज़ादियाँ हैं सब कफ़स में
परिन्दे बेआस्मां हैं !

अल्लाह फिर भी मेहेरबां है...


हमने क्या खोया है देखो 
हमने क्या पाया यहाँ ...
उम्र दे दी ज़िन्दगी को 
नूर ऐ खुदा पाया कहाँ ?

काटे तोड़े फेंके मोड़े

हमने कितने रिश्ते छोड़े

जितने दिल बदले हैं हमने

उतनी लाशें हैं यहाँ .

मेहेरबां है मेहेरबां
अल्लाह देखो मेहेरबां...

धूप सर पर आ गिरी
आसमाँ फट कर गिरा है
पेड़ खुद गिरने लगे हैं
नदियाँ बहती अब कहाँ हैं

मेहेरबां है मेहेरबां
अल्लाह फिर भी मेहेरबां है...

यह आख़िरी हरकत न हो
घर खुदा के बरकत न हो
धरती कफ़न में ढक न जाए
रिश्ते लहू के कट न जायें
इंसान हैं हम किस तरह के
अपने किये पर अब लजाएं

आओ उगायें कोपलें कुछ
नन्हे उजाले खिलखिलाएं
गर्दने काटें नहीं अब
गर्दनें उस दर झुकाएं
रूठे खुदा को चल मनाएं
दीवार सरहद की गिराएं
मंदिरों में भी खुदा है
मस्जिदों को चल बताएं

खोते रहे हैं सदियों से हम
आओ... अब हम कुछ तो पाएं...


मेहेरबां है मेहेरबां है
अल्लाह देखो मेहेरबां है .


                       - देव .

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खोना .... पाना ....

Sunbeams : Sky Sun Cloudsऔर क्या पा सकूँगा मैं , 
तुझ से मुक्कदस ?

वही दरोदीवार 
रोगन से सजे हुए ,
तराशे कांच के फानूस
छत पर धजे हुए ,
कीमती कालीन 
पैरों पर बिछे हुए ,
मखमली लिबास 
जिस्मों पर खिंचे हुए .

सोने की चमक ,
चांदी की दमक ,
सिक्कों की खनक ,
वैभव की धनक ,
अंधी इच्छा का शोर ...
बस पा लेने का जोर .

ना बुझने वाली प्यास ,
एक अंतहीन तलाश .
सांसों सासों पर झूलती 
झूठी जन्नत की आस .

तू नहीं है इन पैमानों में 
तू है मन का विश्वास .
जो रहता है यहीं कहीं 
मेरे वजूद के पास .

और क्या खो सकता हूँ मैं 
तुझसे जरूरी ?

तू तो है अक्षत प्रकाश 
आबद्ध हवा सा एहसास 
ना सन्नाटा तू , ना शोर कोई 
ना बंधन तू ,ना डोर कोई 
ना जबर है तू ,ना जोर कोई 
ना ओर है तू ,ना छोर कोई .

ना तू पीर कोई ना पैगम्बर 
मंदिर मस्जिद ना तेरा घर 
जहाँ झुके सजदे में सर 
वहीं तू आता है नज़र .
तू बच्चों की मुस्कान है 
तू गीता तू ही कुरान है 
तू व्रत है तू रमजान है 
तू भजन तू ही अज़ान है .

मैं जो भी हूँ बस तुझ से हूँ 
तू ही मेरी पहचान है ,
तू होने का है एहसास 
जो है मेरे वजूद के पास .


           - स्कन्द .


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पगडण्डी .


    कुछ दरख्तों के मीठे साए थे ...
    जिन से हो कर के एक पगडण्डी
    थोड़ी पथरीली , टेढ़ी मेढ़ी सी
    मेरे घर की तरफ गुज़रती थी .

    रोज़ उस से मैं हो के घर जाता
    उन दरख्तों के साथ बतियाता ...
    जंगली फूलों को चुन लिया करता
    गाती बुलबुल को सुन लिया करता .

    फिर एक रोज़ उस पगडण्डी पे चलते चलते
    सोचा कुछ दूर तक टहल आऊँ ....
    काली , चमकीली एक सड़क देखी
    जो एक शहर की तरफ जाती थी .
    शहर .... जो दूर जगमगाता था .
    रौशनी .... जो मुझे बुलाती थी .

    फिर तो ये सिलसिला सा चल निकला
    मेरा उस सड़क पे अक्सर जाना
    और उस रौशनी से बतियाना .

    और एक रोज़ उस सड़क को हमक़दम करके
    मैं उस पगडण्डी को पीछे कहीं छोड़ आया ....
    जो मेरे घर की ओर जाती थी
    वही घर .... जिस की छत के साये में
    मुझे सुकून की एक गहरी नींद आती थी .

    अब मेरे चार सू उजाला है .
    रात भी दिन की तरह रौशन है .
    पर मुझे रोज़ रोज़ जाने क्यूँ
    वही पगडंडी याद आती है !

    और एक रोज़ फिर से लौटा मैं
    उसी पगडण्डी से उसी घर में
    टूटी फूटी सी चंद दीवारें
    अजनबी नज़रों से मिलीं मुझसे ...
    अब वहां कोई भी नहीं रहता .

    और अब कोई जगह ऎसी नहीं
    जहाँ जा कर सुकूं की नींद आये .
    रौशनी धूप बन के चुभती है .

    ढूंढता हूँ मैं अब न जाने क्यूँ
    उन दरख्तों का वो घना साया !
    सोचता हूँ मैं अब न जाने क्यूँ
    मैंने क्या खोया , मैंने क्या पाया .

                                        - मीता .
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    दर्दे-सुखन !!

    Old_diary : Open book over a light nature background Stock Photoनज़्मों की पुरानी कापी या                       
    कापी में पुरानी नज्में हैं
    मुश्किल है बताना फ़र्क बड़ा

    मैं जब भी हाथ लगाता हूँ
    कुछ पन्ने खुद खुल जाते हैं
    जिनके कोने हैं जर्द बड़े

    वो पन्ने जीभ चिढ़ाते हैं
    उन पन्नों में कबरें हैं
    कुछ हिम्मत भरे ख़यालों की

    कच्चे-पक्के अशआरों  में
    जो बातें उतरी थीं, अक्सर
    वो बातें उम्रदराज हुईं 

    लफ़्ज़ों में मंशा होती थी
    कुछ करने की, कर जाने की
    अब सुस्त क़दम ग़जलें बाकी

    इन ग़ज़लों में है रूह कहाँ
    फिर भी कुछ ना कुछ लिखता हूँ
    नाज़ायज सी बात है ये

    अब बहरें पहले से बेहतर
    कमज़ोर मगर मजमून बहुत 
    क्या खोकर मैंने क्या पाया?


               -पुष्पेन्द्र वीर साहिल .
    _______________________________________________________

    इस अंक में "जाने माने हस्ताक्षर" वर्ग (MASTERS CATEGORY)  में हम आपके लिए ले आकर आये हैं प्रख्यात कवि मदन कश्यप जी की ये बेहतरीन नज़्म 

    खोई हुई चीज़ों की नज़्म      





    शायद अब वह अंतड़ियों से भी ज्यादा लंबी हो गई हो 
    फिर भी मेरी स्मृति के छोटे से कोने में रहती है 
    खोयी हुई चीजों की एक गुड़मुड़ी फेहरिस्त 
    जैसे पाँच फुट आठ इंच लंबे शरीर में
    रह लेती हैं मीलों लंबी नसें

    वैसे खामख्वाह कुछ खोते रहने की आदत नहीं है 
    कोशिश करता हूँ कि रहूँ चाक-चैकस 
    केवल जरूरी चीजें ही ले जाता हूँ यात्रा में
    जाने से पहले अपने बक्स 
    तथा लौटने से पहले कमरे का अच्छी तरह मुआइना करता हूँ
    फिर भी कभी-कभी कोई गलती हो ही जाती है 

    पत्नी कहती है कि बेशऊर हूँ
    बटन लगाना तक भूल जाता हूँ
    कभी-कभी बस या ऑटो में चलते हुए 
    चला जाता हूँ एक-दो पड़ाव आगे 

    पैसों के खोने का हिसाब नहीं है
    उन्हें तो रहना नहीं होता 
    खोते नहीं तो खर्च हो जाते हैं

    मुझे लगता है भूलता बहुत हूँ इसीलिए खोता हूँ
    परंतु कुछ खोना ऐसा होता है जिसे भूल नहीं पाता 

    खोने का दुख अक्सर छोटा होता है 
    मगर कभी-कभी बहुत लंबा भी होता है 
    एक बार जब घर में केवल एक ही छाता था 
    मैंने खो दिया और खुद यात्रा पर चला गया 
    तब पत्नी को बेटे की दवा के लिए 
    बारिश में भींगते हुए डिस्पेंसरी जाना पड़ा 
    आप कहीं बारिश में घिर जाएँ और भींगते हुए 
    घर लौटें उसकी बात और है
    लेकिन आप उस वेदना की कल्पना नहीं कर सकते 
    जो छाते के अभाव में घर से भींगते हुए निकलने से होती है 
    मैं अपनी पत्नी की बारिश से ज्यादा अपमान में
    भींगते हुए चेहरे की कल्पना करके अब भी डर जाता हूँ

    कभी-कभी हम व्यर्थ की चीजों के लिए बेचैन होते हैं
    बचपन में स्कूल में याददाश्‍त बढ़ाने की दवा खरीदी थी 
    दो रूपए की पूरी दवा कहीं खो गई 
    मैं बहुत रोया-चिल्लाया 
    और अपने छोटे भाई की फजीहत भी की 
    तब मुझे लग रहा था कि मैं याददाश्‍त बढ़ाने की 
    एक महान अवसर से वंचित हो गया 
    अब उसे याद करके शर्म आती है और भाई के प्रति 
    जो अब इस दुनिया में नहीं है
    अपने व्यवहार के लिए दुख होता है 

    कुछ खोना सुई की चुभन जैसा होता है 
    जिसमें दर्द बहुत तेज उठता है पर जल्दी मिट जाता है 
    जैसे चाबी का गुच्छा खो जाना 
    कलम खो जाना 
    चश्‍मा खो जाना 
    डॉक्टरी पर्ची खो जाना 
    किशोरी अमोनकर का कैसेट खो जाना 
    वैकल्पिक व्यवस्था के साथ ही 
    खत्म हो जाता है खोने का गम

    परंतु, कुछ ऐसा खोना भी होता है 
    जो नासूर की तरह टपकता रहता है 
    और बिलआखिर छोड़ जाता है एक गहरा निशान 

    मैंने कई बार ऐसी चीजें खोयी हैं 
    जो फिर मुझे कभी नहीं मिलीं

    किताबों का खोना बिल्कुल अलग तरह का मामला है 
    अक्सर किताबें खोती नहीं टपा दी जाती हैं
    कई बार हम टपानेवाले को जानते होते हैं 
    पर कुछ कर नहीं पाते 

    मैंने चीजें खोयी हैं 
    बहुत-बहुत चीजें खोयी हैं
    मगर चीजों से ज्यादा अवसर खोया है 
    यह चीजों के खोने की कविता है 
    अतः अवसरों के खोने का ब्यौरा नहीं दूँगा 
    पर कई बार अवसर भी चीजों की तरह होता है 
    अथवा चीजें अवसर की तरह होती हैं 

    पता नहीं तब मैंने चीज खोयी थी या अवसर खोया था 
    पर एक खोना ऐसा भी है 
    जिसे मैं अब भी अतीत में लौटकर 
    पा लेने के लिए बेचैन हो जाता हूँ

    वे लोग कुछ नहीं खोते जो समय को अंगुलियों पर नचाते हैं 
    खोना मुझ जैसों के हिस्से होता है जिन्हें समय नचाता है 

    अब खोने की कविता इतनी भी लंबी नहीं होनी चाहिए 
    कि पाठकों को अपना धैर्य खोना पड़े
    सो समाप्त करता हूँ
    वैसे भी खोने की चर्चा क्या करना एक ऐसे समाज में
    जिसने अपना गौरव खो दिया हो!


                      - श्री मदन कश्यप 

    ______________________________________________________________

    आज के विषय से सम्बंधित श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी की ये भावपूर्ण कविता , जगजीत जी के स्वरों में आप के लिए प्रस्तुत है .


    क्या खोया क्या पाया जग में ...



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    13 टिप्‍पणियां:

    Giribala ने कहा…

    Beautiful poems!! As an optimist my story is: जो खोया उसका गम नहीं, जो पाना चाहूँ वो भी मिलकर ही रहेगा :-)

    meeta ने कहा…

    @Giribala Joshi - Yesss , that should be the attitude . Thanks .

    dev ने कहा…

    Couldn't stop myself from writing this... it is wonderful edition Meeta ji... and what diversity here... i feel so inspired... though i am copying Leena ji's style of commenting but these wonderful lines left a deep impact...

    जो कुछ भी पाया
    उसे पहचाना ...
    मगर
    खो जाने के बाद .


    दिले ग़मगीं में भी वो बनके खुशी रहता है,
    उसे खोने में भी पाने का मज़ा आया है।

    बहुत ही ईमानदारी से 'वो' करता है हिसाब
    जो दिया जिंदगी को बिलकुल वही लौटाया...

    waahh...

    मैंने तकलीफ़ बड़ी देर तक रोके रक्खी
    फिर भी रोने के हालात नहीं बन पाए

    Skand sir... its a treat to read you... all words are so remarkably put...

    रौशनी धूप बन के चुभती है .... meet ji this is magical..

    कच्चे-पक्के अशआरों में
    जो बातें उतरी थीं, अक्सर
    वो बातें उम्रदराज हुईं
    waah Pushpendra ji... baatein umrdaraz...

    वैसे भी खोने की चर्चा क्या करना एक ऐसे समाज में
    जिसने अपना गौरव खो दिया हो!

    this a real treat... congratulations to all here at Chirantan... :)

    lots of love...
    dev

    Leena Alag ने कहा…

    With every new issue of Chirantan i feel that this time i'll maintain my poise of a commentator n everytime i have serious doubts that how much and how long would i be able to draw from my limited repertoire of compliments but team Chirantan makes me talk sooooo much by their sheer effort and phenomenal poetry eaaaaach n everytime... [:)]...but i m so relieved to see that i am not the only one facing this problem...Shri Madan Kashyap ji's amaaaazing poetry n its detailed length shows that jo baatein dil ke itnay kareeb hoti hain unhein length of words mein nahin baandhaa ja sakta:) ...Dinesh Dwivedi ji ki poetry again is a show stopper... "KHONAA PAANAA"...in my understanding, i don't think hum kuch bhi completely paatay ya khotay hain...agar pooraa paatay to woh khotaa na n jo kho gaya woh i strongly believe can never be completely lost or annihilated...everything lost leaves behind a memory or a mark...Pushpendra ji,i think it would be an understatement if i said that you are outdoing yourself with every issue....chahay baat introduction ki ho,poetry ki ya usmein darshaayi feelings ki...Meeta,what absolutely piercing,simple n straight poetry...i am completely strung on,"Khoyaa kya...Paayaa kya"...have read and re-read it n number of times...its like they say,u don't know what u'v got till its gone...point is...u knew what u had...but u never thought u'd ever lose it...:)...Imraan ji,aapki poetry itni endearing hoti hai that despite its pain every time i read it i am beaming...aapkay mann ki sachchai aapki poetry mein saaf jhalakti hai...:)...Rashmi ji,Skand ji, Devesh ji...:)...indeed Allah meherbaan hai...how else can one explain the foundation of "CHIRANTAN"...and i guess HE has a reason behind taking away what He does...all we can say is"rehtay hamaaray paas to yeh toot-tey zaroor.....achcha kiya jo aap ne sapnay churaa liye"...today Devesh ji has simplified my work...he has picked the most beautiful lines and i am absolutely one with him in his choice of the "high points"...:)...this video is a personal favourite....thank you so much team "Chirantan" for an audio,visual n mental bonanza.....would like to end again on a more sensible note...

    "Talab ki raah mein paanay se pehlay khonaa padta hai
    baday sauday nazar mein hon to chotaa hona padta hai...
    zubaan daytaa hai jo aansoo tumhaari bezubaani ko
    ussi aansoo ko phir aankhon se baahar hona padta hai...
    mohabbat zindagi ke faislon se ladh nahin sakti
    kissi ka hona padtaa hai kissi ko khonaa padtaa hai".....

    Cant say what i'v lost but am so blessed to have found CHIRANTAN....love u guys!!!.....:)

    meeta ने कहा…

    @Dev- It's truly a pleasant surprise reading your beautiful comment on this issue and wonderful going through your contribution after a gap . Thank you !!

    meeta ने कहा…

    @Leena - As always an amazing comment . We can read the gist of the topic in your words . And thanks for the wonderfully apt quotes . It's a treat to read you . Thanks !!

    रचना दीक्षित ने कहा…

    मीता जी आपने तो खोने पाने पर पूरा शोध कर डाला. खोने और पाने का अहसास वंही होता है जहाँ प्यार है. फिर प्यार में ऐसी कश्मकस चलती रहती है. बहुत सुंदर संकलन प्रस्तुत किया है इस विषय पर . आपकी रचनाएँ भी बहुत सुंदर और भावपूर्ण है.

    बहुत बधाई और शुभकामनायें.

    vidya ने कहा…

    excellent collection...
    i admire ur creativity and efforts...
    nice blog...

    regards.

    कविता रावत ने कहा…

    bahut sundar sanklan prastuti hetu dhanyavad.

    Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

    very nice.

    meeta ने कहा…

    रचना जी - आप की खूबसूरत टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद . हमें ख़ुशी है आप को चिरंतन का यह अंक पसंद आया .

    meeta ने कहा…

    Vidya - Thank you for appreciating and a warm welcome in Chirantan family :-)

    meeta ने कहा…

    Kavita ji - Thank you very much .

    Nisha Maharana ji - Thanks a lot for appreciating .

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