मुझे लगता नहीं
कि प्यार चेहरों से भी होता है ...
या आँखों से ,
या होठों से ...
मगर हाँ
रूह से होता है
इस पर एक यकीं सा है .
तभी तो
मां के चेहरे पर
वो पड़ते उम्र के साए ,
वो धुंधलाती हुई आँखें ,
वो बालों की सुफैदी भी
कहाँ कोई फर्क लाते हैं !
मैं जब भी देखती हूँ
बस मुझे इक नूर दिखता है .
और वो नूर जब
उसकी निगाहों से बरसता है ;
मेरे दिल में उतरता है .
मुझे भी पाक करता है .
मैं उस को प्यार कहती हूँ .
- मीता .
1 टिप्पणी:
jo dil ko bhaa jaaye
jahan mein zazb ho jaaye
har lamhaa yaad aaye
uske aage kuchh nazar naa aayee
yah bhee pyaar hee to hotaa
meetaji as usual nice,pl.write more
it shall please you and people like me who love good poetry
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