सोमवार, 2 जनवरी 2012

मन के गलियारे - corridors of heart .




कहना मुश्किल है कि ये शुरू कहाँ से होता है , कहाँ कहाँ से हो कर गुज़रता है और किधर जाएगा ...लेकिन हर कोई इस पर अपने पाँव रखता ज़रूर है ... दिल उदास हो , किसी की याद ने दस्तक दी हो , कोई पुराना ख्वाब टूट जाने का दर्द कचोटता हो , किसी से कुछ न कह पाने की तकलीफ सालती हो या कुछ ऐसा कह जाने का रंज जो कहना नहीं था .....बस इतना काफी है क़दमों को बरबस उठ जाने को मजबूर करने केलिए और हम निकल पड़ते हैं मन के गलियारे में ....थोड़ी देर ही सही इस गलियारे का सफ़र एक सुकून दे जाता है ... आइये चलते हैं मन के गलियारे में ...


                                    - पुष्पेन्द्र वीर साहिल .   


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संदूक पुराना .




धुंधलाई सी यादों की  
तसवीरें हैं कुछ मुड़ी-तुड़ी .
धूप ज़रा सी , छांह ज़रा सी 
चंद खुशबुएँ उडी उडी ,


बचपन के वो खेल खिलौने ,
भूले बिसरे गाने हैं ...
मीठी सी कुछ मुस्कानें हैं ,
कुछ बेनाम खजाने हैं .


प्यारे से चेहरे भी हैं 
जो कहाँ न जाने छूट गए .
एक दो सपने -
जिनके पर उड़ने से पहले टूट गए .


जाने क्या है इनमें ऐसा 
अब भी इन्हें सम्हाल रखा है ...
मैंने इन्हें सहेज के 
इक छोटे बक्से में डाल रखा है .


मन के गलियारे से गुजरूँ 
तो आता है वो तहखाना ...
जहाँ छुपा कर रखा हुआ है 
मैंने एक संदूक पुराना .


अक्सर उसे खोलती हूँ मैं 
जब भी तनहा होती हूँ ,
छू कर उन बीते लम्हों को 
कुछ हंसती , कुछ रोती हूँ .


दो पल उनके साथ बिताना 
इतना अच्छा लगता है !!
झूठे जग में यही खज़ाना 
मन को सच्चा लगता है .


एक दिन तुम भी ऐसा करना 
मन के गलियारों में जाना ...
ढूंढो...शायद वहां मिलेगा 
तुमको भी संदूक पुराना .


                     - मीता .


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मन का गलियारा ..

अक्सर मन के गलियारों में
कुछ पल कैद हो जाते हैं
स्व इच्छा से ..


बेशकीमती पल
जिद्दी पल
ख़ामोशी के पल
खुलूस के पल
फिर चाहे बाहर कितना भी शोर हो
खीच लेते है आपको
अपनी तरफ . 


आप भी
उन बंद दरवाजों के पीछे पहुच कर
जी लेते है एक उम्र ...
ऐसा ही कुछ
वो नए साल का पहला दिन था
एक अनगढ़ हाथ के बने
उस अधजले और कच्चे पक्के केक
के साथ
जो हमने उस टिब्बे पर गुजारी थी .


इतनी ख़ामोशी से
नया साल आते मैंने पहली बार देखा था
फिर घर जाकर भी नींद नहीं आयी
जैसे एक एक पल समेट रही थी स्मृति वन में
अनोखा इतना अनोखा
कि बस ज़हन में बस गया .


आज भी शोर शराबे के बीच
वो पल
मेरा हाथ साधिकार खीच लेता है
और ले जाता है वहीँ
मन के गलियारों में....
जहाँ
चारों ओर का शोर गुम हो जाता है
..रह जाते हैं
मै, तुम और वही अहसास .


                     - रश्मि प्रिया .


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मन के गलियारों में दीप जलाये हमने।





सूने सूखे उपवन फिर महकाये हमने,
मन के गलियारों में दीप जलाये हमने।


क्या रक्खा था ऐसे मर मर के जीने में,
हर दिन पीड़ाओं की नदिया को पीने में।


अब वो बीत गये दिन आँखों में था पानी,
दूर गई वो रैना जब नीर बहाये हमने।


मन के गलियारों में दीप जलाये हमने।


औरों को तड़पाना खुद को भी सिसकाना,
छोड़ दिया है हमने दुख के गान सुनाना।


अब तो बस महफिल में मीठी बातें होंगी,
आनंदों के चुनकर गीत बनाये हमने।


मन के गलियारों में दीप जलाये हमने।


जटिल कुटिल लोगों से मेरा हाथ छुड़ाया,
नित जीवन में ज्ञानी लोगों को लेकर आया।


ईश्वर ने राह दिखाई तो कलियां मुस्काई,
कितने प्यारे प्यारे मीत बनाये हमने।


मन के गलियारों में दीप जलाये हमने।


                            - इमरान .


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क्यूँ ? 



अँधेरा हूँ मैं , यही मेरा वजूद है .
फ़ना होना है तुझ में...या घुल जाना है 
मुझ में अभी भी ये रौशनी का ख्वाब क्यूँ है !


मैं इधर हूँ कि उधर हूँ मैं ...
झूठ कह कर तुझे अब मनाऊँगा नहीं .
तेरे पास तेरे सवालों का हर जवाब क्यूँ है ?


तेरी ठंडी आवाज़ में भी सुकूं खोज लेता हूँ ,
और खुद से भी कोई शिकवा नहीं होता ...
मेरी आदत ये इतनी खराब क्यूँ है !


खुद को ही नहीं समझा 
मेरी ज़िन्दगी इस कदर टेढ़ा हिसाब क्यूँ है ? 


तेरे दिल में रह सकता नहीं ...
खोजता रहा जिसे उम्र भर 
तेरे ही मन के गलियारों में 
फिर दीखता मुझे वो गुलाब क्यूँ है ?


                     - सौरभ .


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वो खिड़की तेरी यादों से आई है .



वही जाना पहचाना सा शहर 
वो नीम तारीक़ मोहल्ले 
दीवारों से लटकती हुई उम्मीद की बेलें 
और वही एक खिड़की 
जो बंद रहती थी तब भी 
बंद लगती है अब भी...

मन के गलियारे से गुज़रता हूँ  जब भी 
ये खिड़की रोक लेती है 
पाँव में यादों की कीलें ठोक देती है 
वो खिड़की जिसके झरोखों से 
मैं तुमको देखता रहता था 
तुम ज़ुल्फें झटकती थी 
मैं भीगता रहता था 
वो खिड़की जिसकी जानिब  
रात को चंदा उतरता था 
और उसकी ओट से मैं  
तुम्हारे हुस्न के टुकड़े कुतरता था 

वो जो सुबह की दस्तक पर 
तुम खोल कर किवाड़ 
मुझ पर मोगरे के फूल फेंका करती थी 
मैं भी फ़िराक़ की नज़्मो के टुकड़े 
उस खिड़की से तुम्हारी छत पर फेंकता था 

मन के गलियारे से गुज़रता हूँ जब भी 
ये खिड़की रोक लेती है 
और अपने दर्दाराए हाथों से 
कुछ मोगरे के टुकड़े फ़ेंक देती है...

तुम अपनी गीली ज़ुल्फों को  
जब छत पर सुखाती थी 
तो उनसे छान के आई धूप 
मेरे कमरे का ज़र्रा ज़र्रा महकाती थी 
ये खिड़की याद है जिसको 
वो नादान मोहब्बत के 
शीरी फ़रहाद के किस्से 
वो खिड़की जानती थी 
यह दो दिल हैं उसी नासमझ 
तादाद के हिस्से 

मन के गलियारे से गुज़रता हूँ जब भी 
यह खिड़की रोक लेती है 
इश्क़ जो कुछ रह गया था इसके खांचे में 
वो जाले फ़ेंक देती है...

इस अँधेरे शहर में 
तेरी यादों की रोशनाई है 
मन के गलियारे में 
वो एक खिड़की तेरी यादों से आई है 

वो खिड़की बंद थी तब भी 
यह अब भी बंद लगती है...


                        - देव .


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क़ासिद कल से घूम रहा 
              मन के गलियारे में .


जब भी मैंने चाहा सोचूँ अपने बारे में

तेरा अक्स नज़र आया मन के गलियारे में .

चटका देगा कोई पत्थर, बाहर आते ही 
सपनों को रहने देना मन के गलियारे में .

शायद तूने फिर से कोई ख़त भेजा होगा
क़ासिद कल से घूम रहा मन के गलियारे में .

चलते-चलते थक जाऊं तो सो भी जाता हूँ
घर जैसी ही ख़ामोशी मन के गलियारे में .

एक ही सागर, एक ही मीना, एक ही साक़ी है 
एक ही महफ़िल सजती है मन के गलियारे में .

किसने शोर शहर में डाला, 'साहिल' है तनहा
यादों का हज्जूम चला मन के गलियारे में .


                       - पुष्पेन्द्र वीर साहिल .


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11 टिप्‍पणियां:

Leena Alag ने कहा…

First n foremost i'd lyk to extend my heartfelt wishes on the 1st issue of this New Year...but at the same time its disappointing to see such limited poems coming from the"corridors of the heart"!...reading today's blog felt as if it ended even before it begun...:(...yet,whtevr has been posted,is lyk few diamonds shining about lyk stray dewdrops on a rose....:)...
Pushpendra ji, ur opening lines are so beautiful n open out so many vistas of the heart...
Meeta, whaaaat a wonderful poem....its soooo true...our biggest treasure is most definitely our own heart bec its thr whr lie embedded r fears,love,guilt n hopes...luvvvd- 'एक दिन तुम भी ऐसा करना
मन के गलियारों में जाना ...
ढूंढो...शायद वहां मिलेगा
तुमको भी संदूक पुराना "

Rashmi ji u hav beautifully incorporated the call of the hour ie New Year's with the topic,
"इतनी ख़ामोशी से
नया साल आते मैंने पहली बार देखा था
फिर घर जाकर भी नींद नहीं आयी
जैसे एक एक पल समेट रही थी स्मृति वन में"
...bahut khoob...:)
Imraan ji,aapki poetry bahut positive hai...just as it should be in celebration of a fresh year...dispelling darkness n with conviction n hope movin towards light,
"मन के गलियारों में दीप जलाये हमने।" Saurabh,the surprise package!!!...welcome back!...:)...all i need to ask is aapnay humein apni creativity se door rakha itnay din,"kyuuuun"???....:))))
Devesh ji,Devesh ji,Devesh ji!!!!...jab aap itni roomaaniyat bhar dayngay apni poetry mein to yakeen maaniye kissi ke bhi dil ka khidki band reh hi nahin sakti...
"मन के गलियारे से गुज़रता हूँ जब भी
यह खिड़की रोक लेती है
इश्क़ जो कुछ रह गया था इसके खांचे में
वो जाले फ़ेंक देती है..."
...uufffff!!!
Pushpendra ji,before i say nethin at all i just need to ask u ke aap har baar itna thehraav se kaisay likh paatay hain!!!...aapki itni dard bhari nazm bhi padnay mein itnaaa sukoon dayti hai...
"चटका देगा कोई पत्थर, बाहर आते ही
सपनों को रहने देना मन के गलियारे में" "किसने शोर शहर में डाला, 'साहिल' है तनहा
यादों का हज्जूम चला मन के गलियारे में "....incomparable!!!!....:)

My comment feels incomplete widout quoting one of the Masters....so here it is,
"kissi ne kabhi haal ko apnay dekha nahin...kissi ne haal ko apnay kabhi parkhaa nahin...aur mustakbil hai itna door...ki uss tak haath kabhi pahunchaa nahin...tabhi to mujhay milti hai maazi mein apni panaah...yahan se bahut door...mustakbil-e-naarsaaka dhundhalkaa jahan...khaymaazan hai....sajaai hai maazi ne bhi dekhiye...wahin jugnuon ki baaraat...kabhi mujhsay dil poochtaa hai...kabhi dil se main poochti hoon...yeh khidki naa hoti to kya hota?...main kahaan hoti...."
-Meena Kumari

Giribala ने कहा…

Beautiful, Meeta!!

मनोज कुमार ने कहा…

मन के गलियारे से विभिन्न एंगिल (कोण) से गुज़रना एक सुखद अनुभव रहा।

Nirantar ने कहा…

behad khoobsoorat kavitaayein
man ke galiyaaron mein
bahut kuchh chhupaa hotaa hai
jitnaa yaad karo
utnaa aur yaad aataa hai

अनुपमा पाठक ने कहा…

सभी रचनायें सुन्दर हैं....!
इन्हें पढ़ना... गुनना बहुत अच्छा लगा!
आभार!

meeta ने कहा…

@Leena - as always your words have an inspiring and tonic effect on all of us . Thanks for sharing this beautiful composition by Meena Kumari ji . This has added to the richness of our issue .

@Giribala - thank you for liking the post :)

@Dr. Rajendra Tela ji - heartiest thanks for your beautiful appreciation from all of us .

@Anupama - Thank you very much .it is very encouraging to hear that you enjoyed our effort .

ManSee ने कहा…

I wander into the corridors of heart like, Alice in wonderland, coming out perplexed ....!All of you write so well.Leena has already given words to my feelings .Congrats ! keep it up !
Seema

meeta ने कहा…

@Manasi - This is so very true Seema di , the more you wander in these corridors , the more enchanting they appear . Thank you for this beautiful comment!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

दो पल उनके साथ बिताना
इतना अच्छा लगता है !!
झूठे जग में यही खज़ाना
मन को सच्चा लगता है ....

बेहतरीन संकलन है ...

Pushpendra Vir Sahil पुष्पेन्द्र वीर साहिल ने कहा…

लीना जी, गिरिबाला जी, डा. राजेंद्र जी, अनुपमा जी , दिगंबर जी और मानसी जी.. आप निरंतर हमें पढ़ रहे हैं और उत्साह बाधा रहे हैं... यह हमें आगे बढ़ने का हौंसला देता है... शुक्रिया !

meeta ने कहा…

Digambar ji,thanks for appreciating !

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