सोमवार, 9 जनवरी 2012

उम्मीद के रंग - Hues of Hope .




उम्मीद .... ये लफ्ज़ होठों पे आने के साथ ही ले कर आता है कुछ तसवीरें ....एक माँ की आँखें जो टिकी हैं अपने लाडले के पहले क़दम पे... अब चला , अब चला...एक जवान दिल , जो बार बार जा के निहार आता है दरवाज़ा ...कोई ख़त है जो शायद अब आया , अब आया ....ससुराल में बीते पहले रक्षाबंधन को बहिन के हाथों की राखी ...मेरे भैया अब आये , अब आये ....ढलती उम्र में पिता के हाथ ....मेरा बेटा ये बोझ अब सम्हालेगा , अब सम्हालेगा ... ये सब हैं उम्मीदें !लम्हा लम्हा उम्मीद ! जी हाँ सब उम्मीदें इतनी रोमांटिक नहीं होतीं जितनी शायर लोग बयां करते हैं ....पर हैं तो ये उम्मीदें ही ...
        रही बात शायरों की तो न जाने उस्ताद शायर उम्मीद से इतने नाउम्मीद क्यूँ हैं ... कुछ बानगी देखिये ...


न जाने किस लिए उम्मीदवार बैठा हूँ ,
एक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं .
                  ( फैज़ अहमद फैज़ )


यूँ तो हर शाम उम्मीदों पे गुज़र जाती थी ,
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया .
                   (शकील बदायुनी )


न कोई वादा , न कोई यकीं , न कोई उम्मीद ,
मगर हमें तो तेरा इंतजार करना था.
                    ( फिराक गोरखपुरी )


हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद ,
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है .
                     (मिर्ज़ा ग़ालिब )


मुनहसिर मरने पे हो जिसकी उम्मीद ,
नाउम्मीदी उस की देखा चाहिए . 
मुनहसिर - टिकी हुई .
                     ( मिर्ज़ा ग़ालिब )


उम्मीदे शिफा नहीं बीमार को तेरे 
अल्लाह से मायूस हुआ भी नहीं जाता .
                     ( जायसी )


खैर इस बार हम चिरंतन का ये उम्मीदों भरा अंक ले कर आये हैं आप के पास .... उम्मीद है आप को पसंद आएगा .
                                      
                                          - पुष्पेन्द्र वीर साहिल .
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रौशनी .



आओ और देखो ,
अभी मेरे पास 
उम्मीद का एक छोटा सा दिया 
बदस्तूर जल रहा है .

तमाम आँधियों के बावजूद 
कुछ तो है 
कि ये नालायक हार नहीं मानता !!
टिमटिमाता है , डगमगाता है 
मगर बुझता नहीं .

अँधेरी आँधियों के पार 
जब सवेरा दस्तक देगा ;
तब तक 
ये छोटा सा जिद्दी दिया 
रौशनी भी देगा मुझे ...
और आंच भी .


                       - मीता .


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उम्मीद .

चमन उम्मीदों का खिज़ा में उग आता है
एक गिरता हुआ मन फिर संभल जाता है


ठोकरें खाकर ही आता है हुनर जीने का
अनुभव हमारा हरदम यही समझा जाता है


सच मानो रोज सीखती हूँ एक पाठ नया
कोई अन्दर मेरे एक आशा जगा जाता है


उगेगा फिर कल एक उम्मीद का सूरज
एक ढलता हुआ दिन समझा जाता है


पड़ जाए ठंडी गर आग आरजुओं की
तो ‘बशर’ बस बरफ सा बन जाता है
       
                                   - रश्मि प्रिया .
............
* ‘बशर’ = इंसानव्यक्ति .


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उम्मीद बनाए रख .


खुश है सो कर ही नन्हा बच्चा
किन्तु बड़ा होकर होता है उदास
है जूझना पड़ता उसे जीवन समर में
वह अकेला दौड़ता है - बीहड़ डगर में .

थका-प्यासा विश्रांति को लालायित
वह पीछा करता है समय-चक्र का -
जिसकी अविराम गति को पकड़ना उसकी सामर्थ्य के बाहर है .

मानव चूक जाता है लाभ अवसर का उठाने से
अक्सर
क्योंकि उसकी अंजुरी में कहाँ है इतनी गहराई
कि पहुँच सके प्रारब्ध के मूल में .

फिर भी, हाँ फिर भी!
वह करता है प्रयास
इसीलिये तो उभरते हैं नए-नए आयाम
होती हैं उपलब्धियां
मिलती हैं सफलताएं - जीवन-पथ में
अक्सर

आगे बढ़ो, कोशिश करो, डटे रहो
मत सोचो कि क्यों हंसता है ज़माना
क्योंकि 
ये तो हंसता है, हंसता रहेगा
और ये हंसा
किन्तु 
क्या रुक गए इससे अमर पथिकों के कदम ?
नहीं !
वरन पाई उन्होनें एक त्वरा, इससे प्रेरित होकर .

करोगे प्रयत्न
यदि लेकर मन में आशा और विश्वास
तो सफलता मिलेगी - मिल के रहेगी
रोक नहीं पायेंगें तुझको - मैं, ये और वो
इसलिए हिम्मत मत हार,
उम्मीद बनाये रख
जिस पर कहते हैं कि दुनिया कायम है !


                              पुष्पेन्द्र वीर साहिल . 


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The Heart Knows .





When the night is dark ,
and the moon hides 
behind the clouds ,
and not even 
the faintest glow of stars is visible ...
The Heart knows
that sun will smile through .
It's but a matter of time .

When the wound is deep ,
eyes moist ,
and no shoulder to cry upon ...
The Heart knows
one day the pain will cease . 
It's but a matter of time .

When we start a journey , 
and know not where to go .
dragging tired feet 
in the summer heat ...
The Heart knows 
there is a shade for us , somewhere .
It's just a matter of time .

We may not know ,
But the Heart knows ...
every time .

                     Toshita .

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उम्मीदें .

अपने खाली दामन में भरके बेताबी आया है,
उम्मीदों को लेकर दर पे कोई सवाली आया है।


झुलसे जलते सहराओं में उम्मीदों के साये हैं,
मिस्मारी के आलम में लम्हा तामीरी आया है।


मेरे गुलशन की अब देखो चटक रहीं है कली कली,
बनके मौसम उम्मीदों की नई कहानी आया है।


पेड़ों पौधों झुके रहो तुम कहीं न जड़ से गिर जाओ,
अकड़े तुम न यूँ ही रहो झोंका तूफानी आया है।


फज़ा कर रही है फिर देखो मेरे नाम की सरगोशी,
उम्मीदों के थाल सजा फिर से हरजाई आया है।


                                - इमरान .


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नज़्म उम्मीद से है...  
                         


चीनी शक्कर, मिश्री विश्री
                    भूल गई है
आँखें मीचे
होठों पर चटखारे की जीभ फिराती रहती है
खट्टी अमिया, गाच्नी मिटटी
उफ़... क्या क्या यह खा जाती है


नज़्म के पाँव भारी हैं
नज़्म उम्मीद से है...


ग़ालिब के आशारों पर
दिन भर लिपटी रहती है
मीर, ज़ौक, ज़फर के नग्मे
ख्वाब में बुनती रहती है


कहते हैं...
हामिला जो देखे... वैसी सूरत पाती है
                           वैसी सीरत पाती है
अब देखें...
यह नज़्म कहाँ तक
किस शायर पर जाती है...


नज़्म के पाँव भारी हैं
नज़्म उम्मीद से है...


खाली बैठे दोपहरों को
आने वाली नज्मों के उन्वान सोचती रहती है
...यह नाम सोचती रहती है
जब कोई मिसरा करवट लेता है अन्दर
यह हाथ लगाकर पेट पर थपकी देती रहती है
और धड़कनों की चादर पर
कान लगाकर सुनती रहती है


नज़्म के पाँव भारी हैं
नज़्म उम्मीद से है...


शेर बने या गीत बने
नज़्म बने या दोहा
जो भी बने यह नज़्म की बेटी
बस पिघलाए नफरत का लोहा


मुझ शायर से नज़्म को
ऐसी ही कोई उम्मीद है...


नज़्म के पाँव भारी हैं
नज़्म उम्मीद से है... 


                         -  देव .
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मुझसे ये उम्मीद ना कर .



वो सर झुकाए हुए मेरे पास आया था
नज़र भिगोये हुए मेरे पास आया था
मेरा आँचल तो अपने दर्द से तर रहता है
कैसे पौंछता, जो आँसू साथ लाया था


मेरी शिकश्त-शुदा आवाज ने छूकर उसको
कहा, क्या होगा इतना बारे-ग़म उठाने से
जिसे ख़याल तेरे दिल का नहीं उसके लिए
फायदा कुछ भी नहीं अपना दिल दुखाने से


समझती हूँ मैं दर्द ख़्वाबों के बिखरने का 
आखिर ये बात उससे कहती तो कहती  कैसे
तेरी यादों को छुपा रखा है सलीके से 
फिर भला उससे तेरा जिक्र मैं करती  कैसे


कैसे कहती कि जिस सदमे से आज तू गुजरा 
उससे दो-चार हो चुकी हूँ, थोडा वक़्त हुआ
अब भी जगती हैं मेरी नींदें मेरी आँखों में
गुजरे इस बात को हालाँकि थोडा वक़्त हुआ


उदास मत हो चंद रोज़ गुजर जाने दे
टीस दिल के जखम की कुंद पड़ती जाएगी
बस यही कांपती आवाज उससे कह पाई
धुंधली याद गुजरी बात की रह जाएगी


भूल जा उसको जिसको तुझसे अकीदत ही नहीं
तमाम एहसास में ये तल्ख़ हकीक़त भर ले
इश्क़ो-उल्फ़त के लिए, नगमों-अफसानों के लिए
अपने एहसास में पुरजोर अदावत भर ले


कितना आसान है किसी और से ये कह देना
मेरा दिल मुझ से ये सवाल पूछ बैठा है
आज तक मैं तुझे दिल से नहीं भुला पायी 
आज फिर दिल के समंदर में संग फेंका है


लेकिन हमगीर ज़िंदगी पे भी जवाब नहीं
हमेशा की तरह ख़ामोश हैं दिशाए क्यूँ
जिन सवालों का किसी पे भी जवाब नहीं
उन सवालों की पुरशोर हैं सदायें क्यूँ


ऐसा होता है ज़िंदगी में तूने कह तो दिया
मैं कैसे रूहे-जख्म-आलूद अपनी रूह बहलाऊँ
बेसुकूं दिल में सोयी तो नहीं हैं उम्मीदें 
दिले-मायूस को अपने मैं कैसे समझाऊँ 


रुख़ बदल गया नज़र का तेरी,  मेरे लिए
मैं बदल जाऊं, तू ऐसी कोई ताकीद ना कर
तुम मुझे भूल गए, तुम से कोई शिकवा नहीं 
पर तुम्हें भूल जाऊं, मुझसे ये उम्मीद ना कर


                              पुष्पेन्द्र वीर साहिल .


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आज भी .

                                                                        
शायद किसी उम्मीद पै जिंदा हैं आज भी .
ख्वाबों को यों तो अलविदा कहा है आज भी .


वैसे तो मुद्दतें हुईं उनको गए हुए 
इक दर्द सा दिल में धड़क रहा है आज भी .


सूखे हुए कुछ फूल रखे हैं सम्हाल कर 
इक ख़त किसी किताब में दबा है आज भी .


ये कौन सा मौसम ठहर गया है रूह में 
कल भी तो दिल उदास था , रोया है आज भी .


थी राह , तो चलना मेरा भी लाज़मी ही था .
क्यूँ दिल उसी मकाम पर खड़ा है आज भी .


                                  - मीता.
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Today's topic is incomplete without this well known poem .


        Hope is the thing with feathers .
                        
Hope is the thing with feathers ,                           
That perches in the soul .
And sings the tune without the words - 
And never stops at all .


And sweetest in the Gale - is heard -
And sour must be the storm - 
That could abash the little bird 
That kept so many warm .


I've heard it in the chillest land -
And on the strangest sea -
Yet - never - in Extremity 
It asked a crumb - of me .


               Emily Dickinson .
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17 टिप्‍पणियां:

ManSee ने कहा…

This issue has arrived with a ray of hope and positivity.Very good !
Seema

Unknown ने कहा…

bahut is sunder Umeedon ke rang bhare hai .....

Abhar sabhi ka fir se us bhawron me le jane ke liye .............

उम्मीद...

होश में कैसे आये हम
कैसे खुद को समझाए हम
लम्हे जो चुराए थे
उनको कैसे भूल जाये हम
झीत से झांकती रौशनी
मुठियों में कैसे छुपाये हम
वक़्त की छोटी छोटी बुँदे थी
कैसे चेहरा दिखाए हम
आफताब अब तो रोशन है
कैसे रास्तों पे तेरे घूम आये हम
अब तो रोज़ का यह दस्तूर है
कैसे दिले हाल तुझको बताये हम
अब तो खुद ही जान ले ए रहबर
रेत पे घरोंदे बनाये हम
उम्मीद न तब छोड़ी थी, न अब
कैसे लहरों से घबराये हम
मोड़ देंगे दरिया का रुख
एक दिन कर दिखाए हम
हाँ साथ मेरा, हाथ न छोड़ना
सेहर में भी गुल खिलाये हम ....


विनय .. २/११/२०११

अनुपमा पाठक ने कहा…

वाह!!!
उम्मीदों की इस बगिया में,
विचरण कर..
मन बाग बाग हो चला.
डूब रहा था आस का सूरज,
मगर..
फिर दुगुने तेज के साथ खिला.

Leena Alag ने कहा…

Sach boloon to,"thiiiiiiiis issss itttttt!"....what an amAzing issue again!...though entries again are a little scanty but what i feel right now for Chirantan is best expressed in these lines by Ahmed Faraz,"zindagi se yeh hi gilaa hai mujhay...tu bahut der se milaa hai mujhay...humsafar chahiye,hujoom nahin...ik musafir bhi kaafilaa hai mujhay!"....I,from the depth of my heart salute the tremendous and indefatigable effort that you guys put into this blog!...i mean look at the amount of homework you guys do...Pushpendra ji has covered an entire era of poets in his introduction...its sooo sooo sooo beautiful!...Meeta ka ek chotaa sa diya jo saari raat ummeed and aanch dayta hai woh subah Rashmi ji ke ummeed ke sooraj mein tabdeel ho jaata hai...as if implying that hope should only get bigger and brighter with time,"woh ummeed kya jiski ho intehaa...woh waada nahin jo wafaa ho gaya"...hope is that much needed tiny little light in the dark room of life which helps give a negative the hues of a beautiful coloured fotograph...Pushpendra ji,the kind of hope and encouragement that you have portrayed in your poem is exactly the kind of silent support that we at Chirantan get from you all the time...Toshita ji beautiful depiction of tiny rays of hope that touch us in everyday life....Imraan ji hope and humility...the 2 scales needed for a perfectly balanced life...itnay saral dhang se aapnay convey kar diya...Devesh ji,u are a doctor of sorts...aap kab kis baat ko kitni khoobsoorti se "deliver" karayengay yeh soch kar every tuesday is "pregnant" with hope n excitement...for u i hav to say "main so bhi jaaoon to kya? meri band aankhon mein....tamaam raat koi jhaanktaa lagay hai mujhay"...aap logon ke minds in Chirantan are perpetually churning such lovely ideas n how you execute them...aaj u guys are truly rocking!...Pushpendra ji...Meeta...aap logon ki last 2 nazms are so touching...kaash kissi ke rukh badalnay se hamari unsay ummeedein bhi badal sakteein...but will not end my comment on this sad note....so will just wind up with,"jo par samaytay to ek shaakh bhi nahin paayee....khulay the par to meraa aasmaan tha saaraa "....so we'll just keep our hopes flying higher...forever!....godbless!
A very special mention to the little tweety bird....that has most definitely perched itself in our souls ...it doesnt just deserve a morsel but an entire cake!....:)

Nirantar ने कहा…

ummeed nahee hotee
zindgee maut se kam nahee hotee
excellent mind blogging poetry,congrats

करवटें बदलता हूँ ,
रात भर जागता हूँ

आँखें बंद करता हूँ ,
तो उनको पाता हूँ

न मैं सो पाता हूँ ,
न मैं जाग पाता हूँ

आँखें खोलता हूँ,
दो बात कर लूं

बात मन की कह दूं,
रोज़ की तरह आज
भी खुद को ही पाता हूँ

अकेला था,
आज भी अकेला हूँ

निरंतर आँख खोलने
बंद करने में रात गुजरती है

शायद कल मिल जाएं,
उम्मीद में, ज़िन्दगी गुजरती है

26-09-2010

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

उम्मीद पर बहुत खूबसूरत रचनाएँ पढ़ने को मिलीं ... देव की रचना ने विशेष आकर्षित किया ..

Amit Harsh ने कहा…

दिल को कुछ तो करार चाहिए
नाउम्मीदी में भी इन्तज़ार चाहिए

Pushpendra Vir Sahil पुष्पेन्द्र वीर साहिल ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद डॉ. राजेंद्र एवं अमित...

Unknown ने कहा…

चलो ,उठो
कुछ सुखी लकड़ियाँ चुनो
थोडा सा मिटटी का तेल लाओ
या पुराना अख़बार कोई
एक माचिस का डब्बा
और कुछ तिल्लियां भी चाहियें
लौ लगाओ
फूंकों और सुलगाओ
सिर्फ उम्मीद से ठण्ड नहीं दूर होगी

meeta ने कहा…

@Mansee - Thanks Seema di. your comment was missing from so many issues :)

@Vinay ji - Thanks for your beautiful comment !!

@Anupama - thanks ... such a beautiful comment from you . Just lovely .

@leena - "jo par samaytay to ek shaakh bhi nahin paayee....khulay the par to meraa aasmaan tha saaraa ". lovely lines and most beautiful wishes . With your love by our side ...we will definitely soar higher and higher . Thanks !!

@Rajendra ji - thanks for appreciating and sharing your beautiful poem with all of us . Hearty welcome to Chirantan family.

@Amit - just two lines and very deep meaning . Thanks a lot !!

@skand - As always you are right. Mere hope won't suffice . Lots to be done . Thanks !!

I am surprised by the sensitivity and creativity of the comments we are recieving from our readers . It's a real treat going through them . Thank you friends for your wonderful encouragement and support :)

avanti singh ने कहा…

आप ने काफी कुछ रखा है ब्लॉग पर,बढिया लगा ,आप के ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ,उम्मीद है आप की पोस्ट ,मुझे फिर खीच लाएगी यहाँ..... :)

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बेहतरीन संकलन ... अलग अलग रंगों को संजोया है एक ही बगिया में ..

meeta ने कहा…

@अवंती जी आप हमें पढ़ेंगी तो हमें न सिर्फ बहुत अच्छा लगेगा बल्कि आप के कमेंट्स से हमारा हौसला भी बढेगा . धन्यवाद .

@दिगंबर जी हम सब को पढने और सराहने के लिए आप का हार्दिक आभार .

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेहतरीन बेहतरीन संकलन

meeta ने कहा…

@Sanjay ji our heartiest thanks. Please keep reading us and giving us your valuable comment.

meeta ने कहा…

@Sangeeta ji . I am extremely sorry for missing out on your comment . Thanks a lot for your appreciation .

बेनामी ने कहा…

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