गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

सन्नाटा चीखता है

सन्नाटा चीखता है 
क्योँ आवाज नहीं आती यहाँ
जो चेहरे थे रहते यहाँ पर 
न जाने गए वो कहाँ 

चुप्पी से कोरा है कागज 
कलम कितनी मजबूर है 
ग्रहण जो लगा है सर्जन को 
रंग स्याही से जो दूर है 

ऐसे में कोई कैसे 
अब लिखे कोई गीत 
जब खोये है संगी साथी 
और बिछड़ गए हैं मीत 

हर्फ़ यतीम 
हैं दर दर भटकते 
लिखें कोई कैसी इबारत 
बंज़र बियाबान मरघट सी 
लगती है जब ये ईमारत 

कोई शापित मज़ार 
सी लगती है ये 
जहाँ उर्स नहीं लगते 
ऐसे चमन 
जहाँ इश्क नहीं है 
और फूल नहीं सजते 

चलो छोड़ो 
अब तुम 
हो जिद या जरूरत 
लौट के आओ यहाँ 
मिल कर के हम सब 
फिर से सजाएँ 
शब्दों का एक जहाँ 

एक हर्फ़ तेरा हो 
एक हर्फ़ मेरा हो 
बने मिल कर जुमला हमारा 
तेरा हुनर हो 
और मेरा इरादा 
जो नज्मों में ढल जाये सारा 

कहाँ हो 
सन्नाटा चीखता है

स्कन्द 



खोया ...पाया 

समय की कसौटी पर खुद को आजमाया
अब क्या हिसाब करूँ ये खोया वो पाया

उम्र के इस पड़ाव पर आज यही विचार आया
'वही'संजोता सब कुछ जिसने ये जहाँ बनाया
.............क्या हिसाब करूँ ये खोया वो पाया
हाँ कुछ पल कठिन थे ,कुछ देर से गुजरे
निशानियाँ बची है जब 'उसने ' आजमाया
.............क्या हिसाब करूँ ये खोया वो पाया
गर आँचल के कोर में बंधे खुशियों के पल
वैसा ही लिया जीवन जैसा 'उसने' थमाया
...........क्या हिसाब करूँ ये खोया वो पाया
बहुत ही ईमानदारी से 'वो' करता है हिसाब
जो दिया जिंदगी को बिलकुल वही लौटाया
.......अब क्या हिसाब करूँ ये खोया वो पाया



रश्मि 


3 टिप्‍पणियां:

S.N SHUKLA ने कहा…

बहुत सुन्दर सृजन, बधाई.

कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" पर पधार कर मेरे प्रयास को भी अपने स्नेह से अभिसिंचित करें, आभारी होऊंगा.

meeta ने कहा…

@S.N.Shukla ji - thanks a lot for your beautiful words . It would be our pleasure to read your poems .

Madhuresh ने कहा…

बहुत ही ईमानदारी से 'वो' करता है हिसाब
जो दिया जिंदगी को बिलकुल वही लौटाया

बहुत खूब!

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