रविवार, 26 फ़रवरी 2012

लौट आना वसंत ...

                                        



तुम रुकोगे नहीं
चले जाओगे 
अपनी खुशबू ,
अपने तमाम रंग 
समेट कर .


आहिस्ता आहिस्ता 
धूप कड़ी होने लगेगी 
झुलसाने लगेगी मन- प्राण ;
तब कहीं जा कर 
बारिशें होंगी .


फिर धीरे-धीरे
पतझर 
इक रोज़ 
सिहरती ठण्ड में तब्दील हो जाएगा .


और ...
एक गहरी उदास नींद 
सो जाएगी धरा .


सांसें धीरे-धीरे खर्चती ,
दर्द-दर्द जीती ,
कराहती ...
तुम्हारे जादुई स्पर्श के लिए .


तब 
एक स्वप्न की तरह 
तुम लौट आना वसंत ...
धरा के पास !!
भर देना उजास ...
धरा को 
रहने न देना 
देर तक उदास !!


            - मीता .  






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