चले जाओगे
अपनी खुशबू ,
अपने तमाम रंग
समेट कर .
आहिस्ता आहिस्ता
धूप कड़ी होने लगेगी
झुलसाने लगेगी मन- प्राण ;
तब कहीं जा कर
बारिशें होंगी .
फिर धीरे-धीरे
पतझर
इक रोज़
सिहरती ठण्ड में तब्दील हो जाएगा .
और ...
एक गहरी उदास नींद
सो जाएगी धरा .
सांसें धीरे-धीरे खर्चती ,
दर्द-दर्द जीती ,
कराहती ...
तुम्हारे जादुई स्पर्श के लिए .
तब
एक स्वप्न की तरह
तुम लौट आना वसंत ...
धरा के पास !!
भर देना उजास ...
धरा को
रहने न देना
देर तक उदास !!
- मीता .
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