ठण्ड से अधमरी
पत्तियों को
जीवन की धूप दिखा कर
तुम प्राण वायु फूंकते हो
इस तरह
बुझते दिए की लौ सा
एक बार
तेज जला कर
बसंत
तुम भी कहाँ रुकते हो
हाँ, एक बात सिखा जाते हो
हर चीज आनी जानी है
सब में
मौसम सी ही रवानी है
मेरी मानो
मै भी बसंत की तरह हूँ
जब तक मन में रहूँगा
मुस्काऊँगा
एक मुस्कुराहट
तुम्हारे होंठो पर सजा कर
और
कई मधुर यादों की
पोटली थमा कर
मै भी चला जाऊंगा .
राजलक्ष्मी शर्मा.
पत्तियों को
जीवन की धूप दिखा कर
तुम प्राण वायु फूंकते हो
इस तरह
बुझते दिए की लौ सा
एक बार
तेज जला कर
बसंत
तुम भी कहाँ रुकते हो
हाँ, एक बात सिखा जाते हो
हर चीज आनी जानी है
सब में
मौसम सी ही रवानी है
मेरी मानो
मै भी बसंत की तरह हूँ
जब तक मन में रहूँगा
मुस्काऊँगा
एक मुस्कुराहट
तुम्हारे होंठो पर सजा कर
और
कई मधुर यादों की
पोटली थमा कर
मै भी चला जाऊंगा .
राजलक्ष्मी शर्मा.
2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
बधाई...
विद्या...अत्यंत.धन्यवाद् आप सुधि पाठकों की प्रतिक्रिया हमे प्रोत्साहित करती है
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