अम्मा उठी सुबह सूरज निकलने से पहले
और घर को सर पर उठा लिया
कितनी देर तक सोती है "असंस्कारी"
ये कह "तुच्छ" बहू को जाता दिया
बोली बहू से अम्मा सरस्वती पूजन है आज
सास सफाई कर रही है , तुझे आती नहीं है लाज
चल उठ गरम कर पानी मुझ को अभी नहाना है
इस से पहले सूरज निकले "तुलसी माँ "को पानी चढ़ना है
बोली बहू ऑंखें मलते - माँजी थोडा जी मित्लाता है
सुबह जल्दी उठती हूँ तो चक्कर सा आता है
सोचा कर बोली अम्माजी, चलो "लड़ो" फिर तुम सो जाओ
धयान रहे कि डाक्टर से जल्दी "जांच" तुम अपनी करवाओ
पूजा पाठ ज्यों निपटी त्यौं अम्माजी गयी डाक्टर के पास
लड़का जने बहू ये मेरी मन में यही थी आस
नोट हरे जो चढ़े चढ़ाव डाक्टर थोडा सा मुस्काया
बहुत सुदर है आपकी "पोती" , अम्माजी को बतलाया
अम्माजी कि त्योरियां चढ़ गयीं , लिया चिंता ने घेर
बोली डाक्टर कोई जतन करो जो दूर हो "अंधेर"
डाक्टर बोला अम्माजी ये है थोडा मुश्किल काम
कोशिश मैं कर सकता हूँ मिले जो वाजिब दाम
एक बार अपनी बहू से भी आप पूछ ले थोडा
अगर वो मुकर गयी तो अटक सकता है रोड़ा
बोली अम्माजी उस ने जब मेरे नाक कटाई है
अब उसके इस जुर्म की कोई नहीं सुनवाई है
बहू सिसकती रह गयी धुल गये उसके पाप
सुबह उठी थी जो उम्मीद शाम हुई तो साफ़
घर आकर अम्माजी ने फिर पंडित को बुलवाया
बड़े जतन से उन्होंने "सरस्वती" पूजन करवाया
मंदिर में जाकर बोली " माँ, है तूने ही बचाया
न जाने किस का श्राप बहू की कोख में आया
अब तू बेटा ही देना, मैं तेरी जोत जलाऊंगी
नवरातों को, नौ कन्या को, पञ्च भोग कराऊंगी"
सिमट गयी थी बहू खुद में , खो कर नन्ही सी जान
उस अजन्मे रिश्ते के कहीं ऋणी थे उसके प्राण
सोच रही थी की कैसे होगा इस चलन का अंत
न जन्मे जो बेटी कोई तो फिर कैसे आये वसंत .
- स्कन्द .
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