मंगलवार, 6 मार्च 2012

बावरा बसंती मन..


बसंत का मौसम
मन फगुआया ...


चेतना से टकराती स्मृतियाँ
कितने रंगों से भिगोया
नहीं भूलती वो गलियां
वो बजते नगाड़े
गाते फाग की टोलियाँ .


एक ही शब्द सुना 'रंग'
और मन कहाँ कहाँ से गुजर आया .

                   राजलक्ष्मी शर्मा. 

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