मंगलवार, 6 मार्च 2012

रंग बोलते हैं .....


तुम्हारे अहसास से अछूती होती
तो
सचमुच मै सफ़ेद होती ...
किसी ख़ाली केनवास की तरह .


कई रंग मचलते हैं
जब तुम गुनगुनाते हो ,
मंद पड़ते हैं
जब एक
अनकहा अबोला खिंच जाता है ...
कुछ तो कहो
प्रियतम
तुम्हारे इशारे पर
सूरज का लाल रंग देह में उछलता है .
तुम्हारे ख्यालों
के नीले पीले हरे से मेरा एकांत
महकता है .


तुम्हारी
एक हलकी गुलाबी मुस्कुराहट
के लिए नैन रास्ता ताकते हैं .
कभी अनमने रहो
तो
अन्तरमन से भूरे काले रंग झांकते हैं .
उस विराट समंदर का
काही और गहरा नीला रंग
याद दिलाते है उस गंभीरता की
जिसमे मै सिमट कर इस भीड़ में
खुद को महफूज़ समझती हूँ .


सारे रंग
मुझे तुम्हारी ही याद दिलाते हैं
तुम्हे पता है ना..
मेरे सारे रंग तुमसे हैं ,
तुम होते
सचमुच मै सफ़ेद होती
किसी ख़ाली केनवास की तरह .


              राजलक्ष्मी शर्मा. 

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