जिसका अंक है कोई, ना ही आकार है,
जो प्रकाश पुंज है, जो निर्विकार है,
कणों कणों से एक सुर में ये पुकार है,
वही तो सृजनकार है, वही तो सृजनकार है।
ये नगर ये गाम गाम, वन सघन ये धाम धाम,
भोर ये खिली खिली, लालिमा लिए ये शाम।
ये सूर्य चंद्र ये धरा, समुद्र मोतियों भरा।
ये पंछी पंख खोल के, वृक्ष वृक्ष डोलते।
धरती से व्योम तक, जंगल और पुष्प से,
दूर दृष्टि छोर तक, दृष्टि अति अल्प से
जब एक एक सृजन से वो खुद साकार है
फिरे तू क्यों ये पूछता, ये किसका कार है!
कणों कणों से एक सुर में ये पुकार है,
वही तो सृजनकार है, वही तो सृजनकार है।
- इमरान .
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