तुम जानते हो न
वो कुछ है तुम में ,
तुम्हारे ख़याल की खुशबू ने
याद दिलाया मुझे
कि कहीं एक छोटी सी आशा
मुझमें बैठी है
इस इंतज़ार के साथ
कि तुम्हारे बस एक स्पर्श से
संवरे तन मन
और सृजन हो मेरा .
ढल जाऊं मैं
तुम्हारे ऐसे प्रतिबिम्ब में ...
तुम भी न पहचान सको
कि कौन हो तुम और कौन मैं !!
फिर क्या तुम मेरे सृजन हो
या तुम्हारा सृजन हूँ मैं .
- साधना .
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