मंगलवार, 15 मई 2012

खोयी वह लड़की


कई साल पहले
अपने छोटे से घर
के पिछवाडे को खोदते
वो जार जार रोई थी
अपनी काली बिल्ली को दफनाते
कुछ साल बाद अपनी टूटी गुड़िया  
के साथ बचपन की दोस्ती को भी
                               और चंद लम्हे अबोध  बचपन के
उस काले शीशे के संदूक में

आज भी रात को
उस करवट सोये आदमी
और बीच में लडके
के ऊपर से उड़ के
पहुँच जाती है वह 
उस मोड़ पे वापस
दफनाई कविता में
जहाँ सुलगती हैं यादें
बारिश में भीगे उसके  बाल
पे लिखी किसी की पंक्तियाँ
सूरज के रंग में लिपटे एहसास
एक बेटी का अंश जिसको
नाम देने से पहले ही
सूली चढ़ा दिया गया

कल्पना की वह उड़ान
चौके के धुंए में गश खा गयी
पर वह खुद नहीं पहचान पाती
कि किस मोड़ पे खोयी वह लड़की !

- साधना .

चिरंतन - मोड़ / The Bend .

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