सोमवार, 28 मई 2012

माफ़ीनामा.



मेरे बच्चे 
हो सके तो मुझे माफ़ कर देना.


तुम्हारे दादा लड़े थे
उन्होंने लाठियां खाईं 
जेल गए 
कि मुल्क आज़ाद हो 
और मुल्क आज़ाद हुआ. 


पर मैं 
न तो आज़ादी पाने के लिए लड़ा था 
और न ही आज़ादी बचाने के लिए लड़ पाया.

जब लोगों ने नफरत के बीज बोये 
मैंने आँखें बंद कर लीं.
जब क्रूर अट्टहास किये 
मैंने कान बंद कर लिए.
और जब मेरी आजादी छीनी 
मैंने ज़बान पर ताले डाल लिए.


नतीजा तुम भुगतोगे मेरे बच्चे 
मेरी यह कायरता तुम्हें 
दर दर भटकाएगी,
मेरी भीरुता तुम्हें 
हर दिन रुलायेगी.


ज़िन्दगी के इस आखिरी मोड़ पर खड़ा मैं 
बस इतना कहूँगा 
कि इन भटकनों के बीच
कभी जब मेरी याद आये 
तो चाहे शर्म से सर नीचा कर लेना,
पर हो सके तो 
मुझे माफ़ कर देना. 


तुमने मेरा रंग पाया है...
मेरा रूप पाया है, 
पर मेरी कायरता को 
अपने पास न फटकने देना;
मेरे बच्चे उस से लड़ना.


उस से लड़ना 
नहीं तो मेरे बच्चे 
मेरी तरह तुम भी 
ऐसे ही रोज़ रोज़ मरोगे;
मेरी तरह तुम भी 
ऐसे ही किसी मोड़ पर 
डरे सहमे खड़े मिलोगे.

ज़िन्दगी के इस आखरी मोड़ पर खड़ा 
तुम्हारा कायर पिता 
तुमसे यही भीख मांगता है.
तुम्हारी आज़ादी की शुरुआत 
इसी लड़ाई से होगी मेरे बच्चे.

तुम कायर मत बनना.
और हो सके 
तो मुझे माफ़ कर देना.
सुना है 
माफ़ करने से हिम्मत बढती है.

            - दिनेश श्रीवास्तव. 

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