सोमवार, 14 मई 2012

मोड़ के इस एक तरफ



मोड़ के उस पार एक कहानी तेरी भी
मोड़ के इस तरफ एक अफसाना मेरा भी
और मोड़ पे बस तू है, मैं हूँ और इश्क है...


मोड़ के उस एक तरफ
तुम अपनी पाजेब  की झंकार से
उम्मीदों के उजाले खनखनाती हो
धूप के नन्हे पहर
मुस्कुरा कर अपने रुखसारों से उड़ाती हो


मोड़ के इस एक तरफ
मैं तुम्हारी मौसीक़ी के आबशार सुनता हूँ
तुम्हारी उगती हुई शफ़क से अपने आफ़ताब बुनता हूँ


मोड़ के उस एक तरफ
तुम खिलखिलाती, जगमगाती रेशमी सी शाम हो
दिया बाती गुनगुनाती तुम मेरी पहचान हो


मोड़ के इस एक तरफ
मैं तुम्हारी याद में टांकी हुई एक अधखिली सी रात हूँ
चाँद का पैबंद है एक वर्ना मैं बस रात हूँ
मोड़ के इस एक तरफ
तुम रास्तों पर मील का पत्थर लगाती चल रही हो


अपनी पलकों में अँधेरे झिलमिलाकर धूप बोती चल रही हो
मोड़ के इस एक तरफ
मैं बस तुम्हारी याद में यूँ रास्ते रोशन किये बैठा हुआ हूँ
तुम कभी आओगी फिर पलटकर सो रास्ते में जुगनुओ की एक शमा जलाये बैठा हूँ


मोड़ के उस एक तरफ
तुम भी पलकें भिगाए बैठी हो
नीम तारीक से इस रास्ते पर आंसुओं के दीपक जलाये बैठी हो


मोड़ के इस एक तरफ
मैं भी हिज्र की रातें वस्ल की एक होलिका में झोंकता हूँ
तेरे आने की खबर को आती जाती हर सबा को टोकता हूँ


मोड़ के इस एक तरफ
एक हंगामा है बेक़रारी है
मोड़ के उस एक तरफ
बस तेरी याद तारी है... तेरी याद तारी है...


                    - देव .

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