सोमवार, 25 जून 2012

खंडहर में जीवन ...



गाईड 'बता रहा था
ये 'रनिवास ' था
ये उनका स्नान कक्ष
यहाँ लगाये जाते थे' खस' के परदे
और मेरा मन
बस सीढियां उतरते चला गया
एक तन्वंगी
सेवा करती कई दासियाँ
इतर और तेल की खुशबु से महक उठा प्रांगण
उतरती जाती थी रग रग में
मै देखती रही किल्लोलियाँ
दिखती रहीं जलपरियाँ
उनकी ठिठोलियाँ
मन कहाँ कहाँ की और छलांगे मारता
मानो उतर ही गया
उनके साथ उस 'पत्थर 'के
तथाकथित बाथटब में.... [गाईड कह रहा था ...:प]
जी रहा था उस 'पल ' को
जो मुश्किल से कुछ शताब्दी पहले बीती होगी
और 'उस ' ने कंधे 'झिंझोड़े '
ओह! तुम ना बस
हम पूरा प्रासाद देख आये
तुम 'यहीं ' खड़ी हो
खंडहर में ...
अब ना 'हाथ ' पकड़ के ले जाऊंगा
साथ साथ ...
कहीं भी खड़ी हो जाती हो
और खो जाती हो
कहीं की "रानी थी क्या "
...........................:)
अक्सर होता है
मेरे साथ
टूटे फूटे मन , भवन
मेरे अन्दर बस जी उठते हैं
सुनाते हैं ऐसी कहानियां
जो उस 'रट्टू ' गाईड को भी नहीं पता होते ...:))


            - राजलक्ष्मी शर्मा.

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