मैं ठहरा अदना सा एक दरिया, तू है समंदर कहाँ पता था
हुए कभी हमकिनार तो तुम चले हमें दरकिनार करके .
तू इतना गहरा, कि दिल में तेरे है क्या मुझे ये कहाँ खबर थी
मैं तेरी जानिब निकल पड़ा था, तमाम अड़चन को पार करके .
मिलोगे कैसे कि जब हमारा नसीब खानाबदोश राहें ,
अधूरी हसरत मचल रहीं हैं हमारे दिल में गुबार बनके .
नहीं है मुमकिन तेरे लिए भी तटों की चौखट को लांघ पाना
तभी तो उठती है बेक़रारी ये तेरे सीने में ज्वार बन के .
- अंजनी कुमार.
1 टिप्पणी:
वाह...
बहुत सुन्दर अंजनी जी....
अनु
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