गुरुवार, 7 जून 2012

मैं ठहरा अदना सा एक दरिया...



मैं ठहरा अदना सा एक दरिया, तू है समंदर कहाँ पता था 
हुए कभी हमकिनार तो तुम चले हमें दरकिनार करके .


तू इतना गहरा, कि दिल में तेरे है क्या मुझे ये कहाँ खबर थी 
मैं तेरी जानिब निकल पड़ा था, तमाम अड़चन को पार करके .


मिलोगे कैसे कि जब हमारा नसीब खानाबदोश राहें ,
अधूरी हसरत मचल रहीं हैं हमारे दिल में गुबार बनके .


नहीं है मुमकिन तेरे लिए भी तटों की चौखट को लांघ पाना 
तभी तो उठती है बेक़रारी ये तेरे सीने में ज्वार बन के .


                     - अंजनी कुमार.

1 टिप्पणी:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह...
बहुत सुन्दर अंजनी जी....

अनु

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