गुरुवार, 7 जून 2012

ज़िद .





मौज का साहिल से रह रह के टकरा जाना 
ज़ब्त किसमें है ... यह होड़ लगी हो जैसे 
ये है दीवानगी लहरों की ... या बेरुखी साहिल की ...
दोनों के जिस्म तार तार ... रूहें छलनी हों जैसे ...
चोट ऐसी जो एक उम्र तक दिखाई दे 
टुकड़ों टुकड़ों में हर सिम्त बही हो जैसे ...
फिर भी मौजें हैं कि दीवानावार साहिल से 
अब भी टकराती हैं ...टकरा के पलट जाती हैं ...
इश्क का यह भी एक अंदाज़े बयां देखा है,
चोट पहुँचाना जैसे 
शर्ते आशनाई हो .


           - सरस.

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