गुरुवार, 7 जून 2012

तुम - मैं .

          
            1
जब कोवलम अलप्पी 
के किनारे, तुम्हारे 
साथ खड़ा हो निहारा 
तब महसूसा 
धीर- वीर- गंभीर- मर्यादित 
यह नीला समुद्र 
तुम्हारी तरह 
बंधनमुक्त बाँहों में 
समेटता ....बंधनयुक्त !

              2 
तीन समुद्रों से घिरी 
'विवेकानंद शिला' पर 
बीच समुद्र खड़े तुम 
और तट पर दूर,
'कन्याकुमारी' सा मैं .
इसी पर कहा है 
मृदुला गर्ग ने - 'प्रेम 
कितना सहज , कितना जटिल'.


             दिनेश द्विवेदी. 


पुस्तक संग्रह "पारे की तरह" से ली गयी रचनायें .

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