1
जब कोवलम अलप्पी
के किनारे, तुम्हारे
साथ खड़ा हो निहारा
तब महसूसा
धीर- वीर- गंभीर- मर्यादित
यह नीला समुद्र
तुम्हारी तरह
बंधनमुक्त बाँहों में
समेटता ....बंधनयुक्त !
2
तीन समुद्रों से घिरी
'विवेकानंद शिला' पर
बीच समुद्र खड़े तुम
और तट पर दूर,
'कन्याकुमारी' सा मैं .
इसी पर कहा है
मृदुला गर्ग ने - 'प्रेम
कितना सहज , कितना जटिल'.
दिनेश द्विवेदी.
पुस्तक संग्रह "पारे की तरह" से ली गयी रचनायें .
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