गुरुवार, 7 जून 2012

समंदर .



समंदर में मैं हूँ ,
मुझ में समंदर .
बारिश की बूँदें समंदर में
और समंदर बारिश की बूंदों में
मुझे करीब से देखो
पहचानो .
उभरती डूबती लहरों को देखो
सुनो !
वह क्या कह रही हैं ?
यह रह रह कर कौन उभरता है
डूबता है
लहर लहर समंदर
लहरें साहिल से टकराती हैं
फैलती हैं
अपने होने का एहसास दिलाती हैं
फिर लौट जाती हैं .


ज़मीन की गर्दिश
सूरज की तपिश
ज़िन्दगी का बेदार होना
और पानी का भाप बन जाना .
मेरी कोख से निकलने वाली आवाज़ को
किसने सुना , किसने जाना ?
आसमां की कसम जो मह बरसता है
और ज़मीन की कसम जो फट जाती है
तुम्हें क्या मालूम , मैं क्या हूँ ?
मेरी तहों में क्या है ?
बस एक घोंघा तुम्हारे हाथ लग गया
रेत के कुछ ज़र्रों का इल्म हो गया
और उस से आगे ...
और उस से परे ...


कसम है आसमानों की
और चमकते हुए तारों की
अगर मुझे जानना चाहते हो तो खुद एक समंदर बन जाओ
फ़ैल जाओ मेरी लहरों की तरह
फ़ैल जाओ मेरी लहरों की तरह
रात के तीसरे पहर, आती हुई सदाओं की तरह
सूरज की सतरंगी किरणों की तरह


समंदर की उभरती डूबती फैलती
सूनामी लहरें सदाएं दे रही हैं 
समंदर में मैं हूँ 
मुझ में समंदर ....!


           - खुर्शीद हयात .

कोई टिप्पणी नहीं:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...