याद आई वो सात बरस की बिटिया
शायद उस साल ही उस अंक से
कुछ अलग सा लगाव हो गया
याद आया जब माँ रोज कहती थी
सबसे प्यारी मेरी सात बरस की बिटिया
मैं पांचवां बच्चा , तीसरी लड़की
और बीच में यह सात की गिनती
कुछ माँ के बोलने का वोह तरीका
कि लगे मैं सबसे वांछित बच्चा
एक राजा का बेटा लेकर उड़ने वाला घोड़ा
गाते पिता ने वो चित्र बना के छोड़ा
कि सच में मैं एक राजकुमारी
हमेशा बन के रही उनकी प्यारी
किसी से समझा कभी न कम अपने को
इतना आत्मविश्वास दिया उन्होने मुझको
माँ के साथ सिर्फ दो का ही सो सकना
जानते हुए भी रोज रात को झगड़ना
मुझे मनाने के लिए उनका सुझाना
अगली सर्दियाँ एक लिहाफ चौड़ा बनाना
सब साथ सो सकें उनकी खुशबु के संग
आज कहाँ खो गए वो गर्माहट के रंग
कुछ काम से भागने के लिए
उनकी आवाज अनसुना कर देना
और अपनी कोई पुरानी किताब
में छिपा के कॉमिक्स पढना
सर्दियों की गुनगुनी सी धूप में
लेटे लेटे अखबार पे सो जाना
और गालों पे छपे शब्दों पर
सबके हंसने से गुस्सा हो जाना
कितनी छोटी बातें याद आती हैं
बचपन के नाम से टीस जगा जाती हैं
दिल करता है कोई उस लोक से वापस आये
फिर से सब वो छोटे छोटे काम करवाए
उनकी कही बातें को तब सुन के अनसुना किये
एक मौका फिर से मुझे आज वो मिल जाये
आज फिर कोई गीले गालों को सहलाये
सात बरस की बिटिया हूँ यह बात दोहराए
यादों के उलझे हुऎ से ताने बाने से
रंग बिरंगे ऊन के कुछ गोले बनाये
उनसे फिर एक ऐसा नया चित्र बुनूं मैं
कि बचपन की वो दुनिया फिर से जी जाये
- साधना .
- साधना .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें